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________________ मूलाचार प्रदीप ( ३५५ ) [ गप्नम अधिकार तेतादिन्यसुखंजगत्त्रयभवं,भुक्त्यापुनःसंयम, मासाद्यानु च केवलंसुतपसायान्त्येवमोसंक्रमात् । २३१६। अर्थ-इसप्रकार अत्यंत संक्षेप से मुनियों का समाचार बतलाया। बुद्धिमानों को इसके विस्तार पूर्वक बहुत से मेव जिनागम से जान लेना चाहिए । यह समाचार जो मैने बतलाया है वह सब समस्त गुणोंकी खानि है और मोक्ष प्राप्त करानेवाला है। जो चतुर और उद्योगी मुनि वा अजिकाएं इन समाचारों का पालन करते हैं वे मुनि वा अजिकाएं पहले तो तीनों लोकों में उत्पन्न होनेवाले दिव्य सुखोंका अनुभव करते हैं और फिर संयम धारण कर अनुक्रमसे केवल श्रेष्ठ तपश्चरणसे ही मोक्षपद प्राप्त करते हैं ।।२३१५-२३१६॥ मनार की उपसंहारात्मक महिमा एवं उसे धारण करने की प्रेरणा असमगुणनिधानं नाकनिर्वाणहेतु', जिनवरमुखजातं धारितं सर्वशक्त्या । गरपधरमुनिवृन्वमुक्तिकामा प्रयत्नात्, चरतशिवसुसाप्त्ये करस्नमाचारसारम् ।।२३१७॥ इति श्रीमूलाचारप्रवोपकाख्येमहाग्रंथे भट्टारक श्रीसकलकोतिविरचितेसमाचारवर्णनो नाम सप्तमोऽधिकारः। अर्थ-ये समस्त समाचार अनुपम गुणोंके निधान हैं, स्वर्ग मोक्षके कारण हैं, भगवान जिनेन्द्रदेवके मुखसे प्रगट हुए हैं, और गणधरवेव वा मुनियों के समूह ही अपनी शक्ति के अनुसार इमको धारण करते हैं। इसलिए मोक्ष की इच्छा करनेवाले मुनियों को या अजिकानों को मोक्ष सुख प्राप्त करने के लिए प्रयत्नपूर्वक इन समस्त सारभूत समाचारों का पालन करना चाहिए ॥२३१७॥ इसप्रकार आचार्य श्री सकलकीति विरचित मूलाचार प्रदीप नामके महाग्रन्थ में समानारों को वर्णन करनेवाला यह सातवां अधिकार समाप्त हुआ ।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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