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________________ अष्ट मोधिकारः मंगलाचरण त्रैलोक्य तिलकान्सर्वान् जगन्मंगलकारिणः । लोकोत्तमान् शरभ्यांश्चार्हतः सिद्धाश्रमाम्यहम् ॥ अर्थ -- जो अरहंत या सिद्ध भगवान् तीनों लोकों के तिलक हैं, तीनों लोकों में मंगल करनेवाले हैं, तीनों लोकों में उत्तम हैं और तीनों लोकों में शरणभूत हैं ऐसे समस्त अरहंत और सिद्धों को मैं नमस्कार करता हूं ||२३१८ । । प्रकार की शुद्धि के लिये आचार्यादि की स्तुति - दशषाशुद्धिमापन्नास्त्रिजगच्छद्धिदायिनः सुरश्चिपाठकान् साधूनुमंगला विकरान्स्तुये ।।२३१६ ।। अर्थ - जो प्राचार्य उपाध्याय साधु दश प्रकारको शुद्धिको प्राप्त हुए हैं, तीनों लोकों को शुद्ध करनेवाले हैं और तीनों लोकोंमें मंगल करनेवाले हैं ऐसे समस्त प्राचार्य उपाध्याय और साधुओं की मैं स्तुति करता हूं ।। २३१६ ॥ सरस्वती देवी की हृदय में स्थापना - श्री जिनेन्द्रमुखत्वादेवभुवनाम्बिकाम् । विश्वशुद्धि करोचि लेस्थापयाम्यसिद्धये ।। २३२० ॥ अर्थ -- जो सरस्वती देवी भगवान जिनेन्द्रदेव के मुखसे प्रगट हुई है जो तीनों लोको की माता है, और समस्त भव्य जीवों को शुद्ध करनेवाली है ऐसी सरस्वती देवी को मैं अपने अर्थको सिद्धि के लिये अपने हृदय में स्थापन करता हूं ॥ २३२०॥ मुनि भावना के निरूपक अध्याय के निरूपण की प्रतिज्ञाइत्यसिद्धगुर्वावत्वामांगल्यहेतवे । श्रभगारमहर्षीणा मिन्द्रनागेन्द्र चक्रिभिः ।। २३२१ ।। भभ्यवद्यासंसेव्यपादाब्जानां हिताप्तये । वक्ष्याम्यहमनागारभावनाग्रंथमुत्तमम् ।।२३२२ ।। अर्थ - इसप्रकार मैं अपनी मंगल कामना के लिये अरहंत सिद्ध और गुरुत्रों को नमस्कार करता हूं और फिर इंद्र नागेन्द्र चक्रवर्ती और समस्त भव्य जिनके चरण कमलों की पूजा करते हैं, वंदना करते हैं और सेवा करते हैं, ऐसे महा ऋषि महा मुनियों का हित करने के लिये मुनियों की भावनाओंोंको निरूपण करनेवाला उत्तम ग्रंथ ( श्रध्याय ) निरूपण करता हूं ||२३२१-२३२२।। * +
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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