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________________ + मुलाचार प्रदीप ( ३३८ ) [ मप्तम अधिकार करते हैं, असमय में सोते हैं वा निंदनीय आसन लगाकर बैठते हैं, जो विकथायें कहते हैं और अपनी इच्छानुसार बहुत बोलते हैं, ऐसे मेरे शत्रुओं को भी अकेले विहार नहीं करना चाहिये फिर भला मुनियों को तो बात ही क्या है ॥२२०५-२२०६।। अकेले विहार करने से हानिगुरोः परिभवः शास्त्रज्युच्छेदो अडताभुवि । मलिनत्र म तीर्थस्यविह्वलत्वकुशीलता ।।२२०७॥ पायस्थताप्यनाचारइस्याडम्योगुणवजः । स्वेच्छयास्वगुणं त्यक्त्वाजायतकविहारिणः ॥२२० ।। अर्थ---अकेले विहार करने से गुरु का तिरस्कार वा उनकी निंदा होती है, श्रुतज्ञान का विच्छेद होता है, मूर्खता घा अज्ञानता बढ़ती है, जिनशासन मलिन होता है, विह्वलता तथा कुशीलता बढ़ती है, पावस्थ प्रादि मुनियों में रहनेवाले अवगुण प्रा जाते हैं और अनाचार बढ़ जाते हैं । इसप्रकार अकेले विहार करने से गुण सब चले जाते हैं और गुणों का समूह सम बहाता है ।।२२०७-२२०८।। केला विहार अनेक भापति का कारणकंटकप्रत्यनोकश्चमवादिसर्पभूरिभिः । म्लेच्छा दुजन टविसूधिकाविषादिकः ।।२२०६।। अन्यरुपदवोररेकाकोविहरन् भुषिः । प्राप्नोत्यारमविपत्ति म गाविसद्गुणं समा ॥२२१०।। अर्थ-इसके सिवाय अकेले विहार करने से प्रापत्तियां भी बहत पाती है, कांटे, शत्रु, कुत्ते, पशु, सर्प, बिच्छ, म्लेच्छ प्रादि दुर्जन, दुष्ट प्रादि अनेक जीवों के द्वारा तथा विसूचिका आवि रोगों के द्वारा विषादिक प्राहार के द्वारा तथा और भी अनेक घोर उपद्रयों के द्वारा अनेक प्रकार की आपत्तियां पाती हैं। तथा सम्यग्दर्शनाविक श्रेष्ठ गुणों के साथ-साथ अन्य गुण भी सब नष्ट हो जाते हैं ॥२२०९-२२१०।। __ शिथिल मुनि अन्य को सहायता नहीं चाहताकश्चिदगौरवकोमन्वोद्धिकः कुदिलामामः । एकभ्युसोविषयासक्तोमायावीशिथिलोधमः ।।२२११।। आलस्यग्रसितोषोनिर्धर्मः पापधी: शठः । स्वेच्छाचारगोशोत्र सधेगादिगुणातिगः ॥२२१२।। कुशीलः कुत्सिताचारोजिनाजादूरगोनिजे । संचसन्नामि पच्छे मच्छति संघाटकपरम् ॥२२१३।। अर्थ-जो मुनि गौरव सहित है अर्थात् किसी ऋद्धि आदि का जिसको अभिमान है, जो मंदबुद्धि है, लोभी है, हृदय का कुटिल है, सम्यग्दर्शन से रहित है, विषयासक्त है, मायादारी है, शिथिल है, नीच है, आलसी है, संपटी है, धर्महीन है, पापी है, मूर्ख है, जो इच्छानुसार अपने आचरण करता है, संवेग आदि गुणोंसे रहित है, कुशील
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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