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________________ मूलाचार प्रदीप ] [ मातम अधिकार है, कुत्सित पाचरणोंको पालन करनेवाला है और भगवान जिनेन्द्रदेव की आज्ञासे दूर रहता है, ऐसा कोई मुनि अपने गच्छमें रह जाय वा निवास करता हो तो वह अन्य किसी को भी सहायता नहीं चाहता । क्योंकि वह स्वयं शिथिल है ॥२२११-२२१३।। अकेले बिहार फरना पांच पाप के स्थान का कारणजिनामोल्लंघनचकममवस्थास्वशासने। मिथ्यात्वाराधनंस्वात्मनाश:साद गादिभिः ॥२२१४।। समस्तसंघमस्यात्रविराधनाामूनि भोः । निकाषितानिपंचस्यु स्थानान्येकविहारिणः ॥२२१५॥ अर्थ-अकेले विहार करनेवाले भुनि के पांच पापों के स्थान उत्पन्न हो जाते हैं । एक तो भगवान जिनेन्द्रदेव को प्राज्ञा का उल्लंघन होता है, दूसरे जिन शासन में अव्यवस्था हो जाती है अर्थात् सभी मुनि अकेले विहार करने लग जाते हैं, तीसरे मिथ्यात्व की वृद्धि होती है, चौथे सम्यग्दर्शनादिक गुणों के साथ-साथ अपने प्रात्माका ज्ञान चारित्र प्रादि सब गुणोंका नाश हो जाता है और पांचवें समस्त संयम को विराधना हो जाती है । इसप्रकार एक विहारी के पांच पापों के स्थान उत्पन्न हो जाते हैं। ।।२२१४-२२१५॥ ___ किस गुरुकुल में सज्जन मुनि नियास नहीं करेंन तन्त्र कल्पते वास: सता गुरुकुले भुवि । यतेगुणवृद्ध न पंचाधाराभवात्यहो ।।२२१६॥ महान्मरिहपाध्यायः प्रवतंको गुणाकरः 1 स्थविरश्चगणाधीशः पंचामारापराइमे ॥२२१७।। अर्थ-जिस गुरुकुल में गुणों की वृद्धि के लिये महान प्राचार्य उपाध्याय, गुणोंके समुद्र प्रवर्तक स्थविर और गणाधीश ये पांच उत्कृष्ट प्राधार न हों उस गुरुकुलमें सज्जन मुनियों को कभी निवास नहीं करना चाहिये ।।२२१६-२२१७।। प्राचार्य एवं उपाध्याय का लक्षणपंचाचाररतःशिष्यानुग्रहे कुशलोमहान् । दीक्षाशिक्षादिसंस्कार राचार्यः स्याद्गुणार्णवः ॥२२१८।। धर्मोपदेशकोधीमान् धीमतांपाठनोद्यतः । अंगपूर्वप्रकारांनायोव्रत विहिपाठकम् ।।२२१६।। अर्थ-जो पंचाचार पालन करने में तत्पर हों, जो शिष्यों का अनुग्रह करने में कुशल हों, जो दीक्षा शिक्षा आदि संस्कारों से सर्वोत्कृष्ट हों और जो गुणों के समुद्र हों, उनको प्राचार्य कहते हैं। जो सवा धर्म का उपवेश देते हों, अत्यन्त बुद्धिमान हों और बुद्धिमान शिष्यों के लिये जो अंग पूर्व वा प्रकोक शास्त्रोंके पढ़ाने में सदा तत्पर १-तीन मुनियों का गण और सात मुनियों का गच्छ कहलाता है ।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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