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________________ मूलाचार प्रदीप] ( २५६ ) - [पंचम अधिकार इति श्रीमूलाचारप्रकोपकाख्ये महानये भट्टारक श्रीसकसकीतिविरचिते पंचाचार यावर्णने ___ दर्शमाचारवर्णनो नामपंचमोषिकारः।। अर्थ-यह सम्यग्दर्शन तीनों लोकों में पूज्य है, अनंत सुख देनेवाला है, स्वर्ग मोक्षका सर्वोत्कृष्ट मार्ग है, समस्त अनर्थों को दूर करनेवाला है, मोलरूप परम पुरुषार्थ को बेनेवाला है, पापरूप शत्रुको नाश करनेवाला है, सद्धर्मरूपी अमृतका समुन्द्र है, और समस्त उपमाओं से रहित है । ऐसा यह ऊपर कहा हुमा क्षायिक सम्पग्दर्शन मोक्ष प्राप्त करने के लिये प्रतिदिन मेरे हृदय में विराजमान रहो । भगवान तीर्थकर परमवेव संसार भर में तीर्घभूत हैं, जिनवरों में भी श्रेष्ठ हैं, तथा क्षायिक सम्यग्दर्शन आदि तन्यस्वरूप अनंत गुणों को धारण करने के कारण तीनों लोकों में पूज्य हैं, सोनों लोकों में सुशोभित हैं और तीनों सोफ उनकी स्तुसि काहा है । इसी प्रकार भगवान सिद्ध परमेष्ठी समस्त लोकके ऊपर विराजमान हैं संसार तथा शरीर से रहित हैं ज्ञान ही उनका शरीर है और वे अमूर्त हैं। तथा प्राचार्य उपाध्याय साधुपरमेष्ठी सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इन तीनों गुणों से सदा सुशोभित रहते हैं । इसप्रकार के ये पांघों परमेष्ठी मुझे शुद्ध' सम्यग्दर्शन प्रदान करें ॥१६२१-१६२२॥ इसप्रकार प्राचार्य श्री सकलकीति विरचित मूलाचार प्रदीप नामके महामन्थ में पंचाचार के वर्णन में दर्शनाचार को वर्णन करनेवाला यह पांचवां अधिकार समाप्त हुआ।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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