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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( २५५ ) [ पंचम अधिकार हैं, देवों के द्वारा पूज्य ऐसे लौकांतिक देव होते हैं अथवा समस्त भोगोपभोगोंकी सामग्री से सुशोभित और जैन धर्मको प्रभावना करनेवाले सामानिक जाति के देव होते हैं । यदि वे मनुष्य होते हैं तो तीर्थंकर बलभद्र चक्रवतों, कामदेव और गणधर होते हैं जो मनुष्य देव और विद्याधर आदि सबके द्वारा पूज्य होते हैं । सम्यग्वृष्टि पुरुष बड़े ओजस्वी, तेजस्वी और प्रतापी होते हैं, अनेक महा विद्याएं तथा महा यश से सुशोभित होते हैं। भगवान जिनेन्द्रदेव के भक्त होते हैं और चारों पुरुषार्थी को सिद्ध करनेवाले होते हैं। बहुत कहने से क्या लाभ है थोड़े से में इतना समझ लेना चाहिये कि समयदृष्टि सज्जन पुरुषों को श्रेष्ठ वेवगति और श्रेष्ठ मनुष्यगतिको छोड़कर प्रन्य कोई गति नहीं होती ।।१४ - १८ । सम्यग्दर्शन की उपसंहारादि विवरण इत्यादि प्रवरं ज्ञात्वा तम्माहात्म्यं सुखार्थिनः । सर्वयत्नेन कुर्योध्वंदृग्विशुद्धि जगत्सु ताम् ॥ १६॥ निखिलगुणनिधानमु किलोपानमाचं दुरिततरुकुठारं पुण्यतीर्थप्रधानम् । कुगतिगृहकपाटं धर्ममूलं सुखाविधं भजतपरम यत्नादर्शन पुण्यभाजः ॥ २० ॥ अर्थ -- इसप्रकार इस सम्यग्दर्शन का सर्वोत्कृष्ट माहात्म्य समझ कर सुख चाहने वाले पुरुषों को अपने समस्त प्रयत्नों के साथ-साथ तीनों लोकों में स्तुति करने योग्य ऐसी इस सम्यग्दर्शनकी विशुद्धताको धारण करना चाहिये। यह सम्यग्दर्शन समस्त गुणों का निधान है, मोक्षको प्रथम सीढ़ी है, पापरूपी वृक्षको काटने के लिये कुठार के समान है, पुण्य बढ़ाने के लिये तीर्थ है, सब में प्रधान है, कुगति रूपी घरको बन्द करने के लिये कपाट के समान है, धर्मका मूल है और सुखका समुद्र है । इसलिये पुण्यवान पुरुषों को परम यत्न से इस सम्यग्दर्शन को शुद्धता पूर्वक धारण करना चाहिये । ।।१६-२०। शुद्ध सम्यग्दर्शन प्राप्ति की भावना - विश्वाम्यमनन्तशर्मजनकस्वमक्ष मागंपरं विश्वानयहरंपरा शिवदं पापारिनाशंकरम् । सद्धर्मामुतसागरं निरुपमं श्रदर्शनं मेहृदि सिष्टत्वत्र शिवाप्तयेप्यनुदिनंसंकीर्तनसायिकम् ||२१|| तीशास्तीर्यभूता जिनवर वृषभाः क्षाविद विवाद्यरातीत सोधेस्त्रिभुवन महिता भूषिताः संस्तुताश्च । सिद्धाविश्वाप्रस्था हतभववपुषो ज्ञानदेहा अमूर्त: सर्वश्री साधवोमेपिवगुणयुतावृग्विशुद्धि प्रवयः ॥१६२२ ॥ -
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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