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________________ षष्ठोधिकारः मंगलाचरण और ज्ञानाचार के कथन की प्रतिज्ञानानाचारफल प्राप्तानहत्सिद्धत्रियोगिनः । नस्वावक्ष्येष्टधा ज्ञानाचारं विश्वाप्रदीपकम् ।।१६२३॥ अर्थ--अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांच परमेष्ठी ज्ञानाचारके फलको प्राप्त हुए हैं इसलिये इनको नमस्कार कर समस्त लोक-अलोक को दिखलाने वाले आठ प्रकार के ज्ञानाचार का स्वरूप अब मैं कहता हूं ।।१६२३॥ ज्ञानाचार का स्वरूप और उसके भेदये नात्मानुष्यले तत्वं ममो येन निषध्यते । पापाद्विमुच्यतेयेनतमानं जामिनोविदुः ॥१६२४॥ येनरागाइयो दोषाःप्रणश्यन्तिद्रुतसताम् । संवेगाथा:प्रवर्द्धसगुणा ज्ञानंतमूजितम् ।।२।। येनाक्षविषमेन्योर विरण्यशिववस्मंनि । ज्ञानीप्रवर्ततेनित्यं तज्ज्ञानं जिनशासने ॥२६॥ कालाल्यो विनयाचार: उपधानसमाह्वयः । बहुमानाभिदोनिल्लवाचारोग्यंजनाह्वयः ॥२७॥ मर्थाचाराभिषानश्च तसस्तनुभयाभिषः । ज्ञानाचारस्यषिशेया मष्टोमेवा इमे जुषेः ॥२८॥ अर्थ-जिस जानसे प्रात्माका स्वरूप आन जाय, जिस जानसे मन कशमें हो जाय और जिस ज्ञानसे समस्त पाप छुट जाय उसीको ज्ञानी पुरुष ज्ञान कहते हैं। जिस जानसे सज्जनोंके रागाबिक दोष सब नष्ट हो जाय और संवेगादिक गुण वृद्धि को प्राप्त हो जाय उसको उत्तम ज्ञान कहते हैं। जिस ज्ञानसे ज्ञानी पुरुष इन्द्रियोंसे विरक्त होकर मोक्षमार्ग में लग जाता है जिनशासनमें उसी को ज्ञान कहते हैं । इस ज्ञानाचारके आठ भेद हैं-कालाचार, विनयाचार, उपधानाचार, बहुमानाचार, भनिन्हयाचार, व्यंजनाचार, अर्थाचार और उभयाचार । इसप्रकार विद्वान लोग ज्ञानाचार के आठ भेद बतलाते हैं ॥१६२४-२८॥ स्वाध्याय करने के अयोग्य काल - पूर्वाल स्यापरहस्यपूर्वपश्चिमयाममोः । रजन्यामध्यवेलायाः पूर्वपश्चिमभागयोः ॥२६॥ तथामध्याह्नकालस्य कालविघटिकाप्रमम् । प्रत्येकॅविधि सिद्धांतपासायोग्यमेव च ।।३०।। अर्थ-प्रातःकालके एक पहर पहले, सायंकाल के एक पहर बाद, आधी रात . के एक पहर पहले तथा एक पहर बाद और मध्याह्न काल की दो घड़ी ये सब काल
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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