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________________ मूलाचार प्रदीप] [पचम अधिकार रूपी अंधकार को नाश कर विद्वान लोग इस लोक में जो धर्मस्वरूप भगवान अरहंतदेव + के शासनको प्रकाशित करते हैं उसको प्रभावना अंग कहते हैं । यह जिनशासन यथार्थ है, जगतपूज्य है, भव्य जीवों के द्वारा ग्रहण किया जाता है संसार को नाश करनेवाला है और मोक्षको देनेवाला है । यही समझकर बुद्धिमान लोगोंको इसका माहात्म्य प्रगट करना चाहिये ॥६१.६३॥ सम्यग्दर्शन शुद्धि के लिये अष्ट अंग की रक्षा करने की प्रेरणाइमान्यष्टांगसाराणि दर्शनस्य विशुद्धये। विशुद्धिवामि यत्नेनरक्षणीयानि धीधनः ।।६४।। यथागग्यांगहीनोक्षमोहन्तु रिपून नृपः । तथाल्योगविना सम्यग्दृष्टिः कमरिष्यचित् ।।६।। अर्थ-इसप्रकार सम्यग्दर्शनके निःशंकित प्रादि आठ अंग हैं। ये अंग सारभूत हैं और सम्यग्दर्शन को शुद्ध करनेवाले हैं । इसलिये बुद्धिमानों को अपना सम्पग्दर्शन शुद्ध करने के लिये यत्न पूर्वक इनकी रक्षा करनी चाहिये । जिसप्रकार राज्य के अंगों से रहित हया राजा अपने शत्रओं को नहीं जीत सकता, उसी प्रकार निःशंकित आदि अंगों के बिना सम्यग्दृष्टि पुरुष भी कर्मरूपी शत्रुओं को कभी नहीं जीत सकता। ॥६४-६५॥ २५ मल दोषों के नाम में उन्हें न्यागने की प्रेरणाइतिमत्वामुदादायाष्टांगानि दर्शनस्य च। पंचविंशतिस्त्रभेदोषास्त्याज्या मलप्रदाः । ६६।। विधामोडयमवाटी बहनायसनानि च । दोषाः शंकरवषोत्रंतेदृग्दोषा: पंचविंशतिः ।।६।। अर्थ-यही समझकर सम्यग्दर्शनके इन आठों अंगोंको प्रसन्नता पूर्वक धारण करना चाहिये तथा मलिनता उत्पन्न करनेवाले पच्चोसों दोषों का त्याग कर देना चाहिये । तीन मूढ़ताऐं पाठ मह छह अनायतन और पाठ शंकारिक दोष ये सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोष कहे जाते हैं ॥६६-६७।। __ देव मूढ़ता, लोक मूढ़ता, समय मूढ़ता का स्वरूपचंडिका क्षेत्रपालेषु ब्रह्मष्णेश्वरादिषु । उपासनं कुदेशेषुयई वमोठयमेवतत् ॥६॥ मिभ्यामतानुसारेणलोकाचारोघकरकः । प्राचार्यते शठीक लोकमूढत्यमेषसत् ॥६६।। श्रीशमीमांसफादोनोसमयेऽवग्यबस्मसु । मूडभावन यो रागस्तन्मोढ सममाभिधम् ॥७०॥ अर्थ-चंडी क्षेत्रपाल वा ब्रह्मा विष्णु महेश प्रादि कुदेवों की उपासना करना वेवमूढ़ता कहलाती है । मिथ्यामत के अनुसार जो लोकाचार है वह पाप उत्पन्न करने वाला है उसको मो अज्ञानी लोक आचरण करते हैं उसको लोकमूढ़ता कहते हैं । अपनी
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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