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मूलाचार प्रदीप ]
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[ पंचम अधिकार
प्रज्ञानता से बौद्ध मीमांसक आदि के शास्त्रोंमें या अन्य मतमें जो राग करना है उसको समय मूढ़ता कहते हैं ।।६८-७०॥
मुकताओं के त्याग की प्रेरणा --
एतन्मूत्रनिद्य मूढलोकप्रतारकम् । धर्मध्वंसकरं त्याज्यंश्ववंदूरतो बुधैः ॥ ७१ ॥
अर्थ -- ये तीनों प्रकार की मूढ़ताएँ अत्यन्त निद्य हैं अज्ञानी लोगों को ठगने वाली हैं धर्मको नाश करने वाली हैं और नरकादिक के दुःख देनेवालो हैं । इसलिये बुद्धिमानों को दूर से हो इनका त्याग कर देना चाहिये ।।७१ ॥
आठ मदों के नाम-
महाजातिकुलैश्वर्यरूपज्ञानतपो वलाः । शिल्पित्वं दुर्भवा एतेष्टसव्यागुणान्वितैः ॥७२॥
अर्थ - उत्तम जाति, कुल, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप, बल और शिल्पित्व इन आठों का मब करना दुर्मद है गुणी पुरुषों को इनका अवश्य त्याग कर देना चाहिये ।
॥७२॥
उत्तन आणि कुल के मद के त्याग की प्ररणा हेतू पूर्वक-भिन्नभिन्नादिजातीनां स्त्रीणांचतिर्यग्योनिषु । भ्रमद्भर्यन्वयः पोलमध्यंदोरधिकं हि तत् ॥ ७३॥ तिग्मनुष्यनारी तुग्वियोगजशोकतः । अनन्तानयदश्यं तत्समुद्रांभ शोधिकम् ॥ ७४ ॥ इतिस्वमातृपितृच नोचोथ्यांत तिगान्भवे । शात्वादक्षैर्भवस्य ज्यः सज्जातिकुलयो स्त्रिया ॥ अर्थ -- तिर्येच योनि में परिभ्रमण करने वाली भिन्न-भिन्न जातियों की स्त्रियों का जो दूध पिया गया है उसका प्रमाण भी समस्त समुद्रों के जल से भी बहुत अधिक है । तिर्यंच और मनुष्यों की स्त्रियों को अनंत पर्यायों में अपने पुत्रके वियोग से उत्पन्न हुए शोक के कारण जो धांसू निकले हैं उनका प्रमारण भी समुद्रों के जलसे बहुत अधिक है । इसलिये बुद्धिमान पुरुषों को अपने माता-पिता के कुलको ऊंच नीचसे रहित समझ कर मन-वचन-कायसे उत्तम जाति और ऊत्तम कुल का अभिमान छोड़ देना चाहिये । ।।७३-७५।।
ऐश्वर्य और रूप मदके त्याग की प्रेरणा हेतू पूर्वक - क्षणविध्वंसि विज्ञायैश्वचक्रयाविभूभृताम् । परिचोरादिभिः सार्द्ध हयोत्र वयंजोमदः ॥७६॥ रोगक्लेश विषास्त्रार्थ : स्वरूपं क्षणभंगुरम् । मत्वा न तत्कृतो गर्यो जातु कार्यों विचक्षणः ॥ ७७ ॥ अर्थ - इस संसार में चक्रवर्ती आदि महाराजाओं का ऐश्वयं भी क्षणभंगुर