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________________ मूलाचार प्रदीप ] { २३५ ) [ पंचम अधिकार सवः स्कंधः सभेदश्चवहणद्भयजितः। स्कंधस्याद्ध बुधवक्तः स्कंधदेशोजिनागमे ॥७२॥ तस्याद्धिने संजातोवणुपयतमेवभाक् । स्कंधप्रदेशएवाविभागी स्यादणुः पुद्गलः ।।७३।। अर्थ- स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश और प्रण इसप्रकार भगवान जिनेन्द्र देवने पुद्गल के भार भेद बतलाये हैं । जो बहुत से परमानों से बना है जिसके अनेक भेद हैं ऐसे बड़े स्कंधको स्कंध कहते हैं । स्कंधका जो आधा भाग है उसको विद्वानों ने जैन शास्त्रों में स्कंधवेश बतलाया है । उस स्कंधदेश के आधे भाग को तथा उसके भी आधे भाग को इसप्रकार दो प्ररण के स्कंध तक के भागों को स्कंधप्रदेश कहते हैं तथा अधिभागी पुद्गल के परमाणु को अणु कहते हैं ।।७१-७३॥ पुद्गल द्रव्य का उपकारजीवितं मरणं दुःलं सुखं वेहादिवर्जनम् । जीवानां पुद्गलाः कुयुः कर्मबंधाध पग्रहम् ।।७४।। अर्थ----जीवन मरण सुख दुःख तथा शरीर के त्याग के द्वारा पुद्गल द्रव्य जीव का उपकार करते हैं। ये पुद्गल कर्मबंध के द्वारा भी जीव का उपकार करते हैं ।।७४।। अरूपी अजीव द्रव्य के भेद और उनकारधर्मोऽधर्मो नभः कालः इमेरूपादिवजिताः । जीवपुद्गलयो लोक निष्क्रियाः सहकारिणः । ७५।। अर्थ-धर्म अधर्म आकाश और काल ये अरूपी अजीन द्रव्य हैं, ये चारों ही द्रव्य क्रिया रहित हैं और जीव पुद्गल के उपकारक हैं ।।७५॥ धर्म द्रव्य का स्वरूप और उसका उपकारसहकारीगोधर्मो जीवपुद्गलमोर्मतः । असंख्यातप्रवेशोत्र मत्स्थानां जलराशिवत् ।।७६।। अर्थ-जिसप्रकार जलको राशि मछलियोंको चलने में सहायक है उसोप्रकार धर्म द्रव्य जोव पुद्गलों के चलने में सहकारी होता है यह धर्म द्रव्य असंख्यातप्रदेशी है ॥७६॥ अधर्म द्रव्य का स्वरूप और उसका उपकारछायावापथिकानामधर्मः साकार: स्मितौ । जीवपुद्गलयोः प्रोक्तः संख्यानीतप्रदेशवानु ॥७७॥ अर्थ-जिसप्रकार पथिकों के ठहरने में छाया सहायक होती है उसी प्रकार अधर्म द्रव्य जीव पुतगलों के ठहरने में सहकारी होता है । तथा यह द्रव्य भी असंख्यात
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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