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________________ मूलाचार प्रदीप ] ( २३४ ) [पंचम अधिकार के अनुसार अच्छी तरह जानकर प्रतिदिन जीवों की दया करनी चाहिये ।।६३।। मान लिएनय नयसे जीत्र तत्वका स्वरूपजीवतत्त्वनिरूप्येदं प्रसिद्धागमभाषया । सा व वे समासेनाघुनाध्यात्मसुभाषया ।।६४॥ उध्यभावात्मकःप्राण चिताः प्राग्यतोगिनः । जीवन्ति च तथा जीविध्यन्ति जीवास्ततोमताः ।। केवलज्ञामवृन्नेत्राः कतृभोक्त त्वजिताः । उत्पत्तिमरणातीता. वधमोक्षातिमा भुधि ॥६६॥ असंख्यातप्रवेशा सर्वेऽमूर्ताः सिद्धसन्निभाः । सादृश्यागुरगयोगेनानश्चयेनांगिनः स्मृताः ।।६७।। अर्थ---इसप्रकार आगम की प्रसिद्ध भाषा के अनुसार जीव तत्त्व का स्वरूप कहा अब आगे सज्जनों के लिये अध्यात्म भाषाके द्वारा संक्षेप से जोवका स्वरूप कहते हैं। जो प्रारणी द्रव्य प्राण और भाव प्राणों के द्वारा पहले जीवित थे, अब जीवित हैं और आगे जीवित रहेंगे उनको जीव कहते हैं। निश्चय नम से देखा जाय तो समस्त जीव केवलज्ञान और केवलदर्शनको धारण करनेवाले हैं कर्तृत्व और भोक्तत्व दोनों से रहित हैं, जन्म मरण से रहित हैं, बंध मोक्षसे रहित हैं, असंख्यात प्रदेशी हैं और सिद्ध के समान सब अमूर्त हैं तथा आत्म गुणों के समान होने से सब समान हैं । इसप्रकार निश्चय नय जीवों का स्वरूप है ॥६४-६७।। व्यवहार नय से जीवका स्वरूपयुक्त्या मत्यादिभि निश्चातुराय श्चवर्णनेः । कर्मणां कर्तृभोक्तारी बंधमोक्षविधायिनः ॥६॥ चतुर्गतिमतामूर्ताः सुखद् खाविभोगिनः । व्यवहारमयेनान प्रोक्ता जीवा गणाधिपः ।।६।। अर्थ- इसोप्रकार गणपराविक देवों ने व्यवहार नयसे जीवोंका स्वरूप मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि जानों को धारण करनेवाला चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन प्रादि दर्शनों को धारण करनेवाला, कर्मों का कर्ता भोक्ता, बंध वा मोक्षको करनेवाला, चतुर्गति में परिभ्रमण करनेवाला मूर्त और सुख दुःख भोगने वाला बतलाया है ॥६८-६६।। अजीव सत्त्व और उसके भेद-- रूप्यरूपिप्रकाराभ्यामजोवाद्विविधामताः । चतुर्डा पुद्गलारूपिणश्वस्कंधादिभवतः ॥७॥ अर्थ-आगे अजीव को बतलाते हैं अजीव के दो भेद हैं रूपी और अरूपी । उनमें से पुद्गल रूपी हैं और स्कंधाषिक के भेद से चार उसके भेद हैं ॥७०॥ पुद्गल के चार भेद और उनका स्वरूपस्कंधायाः स्कंधदेशाश्च स्कंधप्रवेशपुद्गलाः । प्रणवः पुद्गला अत्रेयुक्तानिनश्चतुर्विधाः ।।७१।।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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