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________________ मूलाचार प्रदीप ( २२६ ) [पंचम अधिकार ने जीव, अजीव, आखव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्य बतलाये हैं। ॥१४००.१४०१॥ जीवों के भेदमुक्त संसारिभेदाभ्यांविधाजीवा जिनमलाः । मुक्ता मेदविनिष्कान्ताः षड़विधाभवतिनः ।। अर्थ-भगबान जिनेन्द्रदेव ने मुक्त और संसारी के भेद से जीवों के दो भेद बतलाये हैं। इनमें भी मुक्त जीवों में कोई भेद नहीं है सब समान हैं। तथा संसारी जीवों के छह भेद हैं ॥१४०२॥ मक्त जीवों का स्वरूप अष्टकर्भवपुमुक्ता दिघ्याण्टगुणभूषिताः। लोकाप्रशिरवरावासाः सिद्धाः स्युरन्तजिताः॥ अर्थ-जो ज्ञानावरण आदि पाठों कर्मों से रहित हैं सम्यक्त्व आदि आठों दिव्य गुणों से सुशोभित हैं और लोक शिखरपर विराजमान हैं उनको सिद्ध कहते हैं । ऐसे सिद्ध अनंतानंत हैं ॥१४०३।। संसारी जोवों के छः भेदपृथ्व्यप्तेजोमहकाया वनस्पत्यंगिनस्त्रसाः । एते संसारिणो ज्ञेया षड्विया जीवनातयः ।।१४०४॥ अर्थ-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और उसके भेद से संसारी जीयोंके छह भेद समझना चाहिये ॥१४०४॥ कोमल पृथ्वी के १६ भेदपृथिवी मालुकाताम्रमयास्त्रिपुषसोसको । सूप्यं सुवर्णमेवाय हरिताले मनः शिलाः ॥५॥ हिंगुलं सस्यकं वजिनमनकोभ्रषालुकाः । लवणं घेति मेवाः स्युमदुपृथ्च्या हि षोडशः ॥६॥ अर्थ-पृथिवी, बालू, तांबा, लोहा, रांगा, सीसा, चांदी, सोना, हरताल, मनशिल, हिगुल, सस्यक, सुरमा, अभरक, अभ्रवालुका, लवण ये सोलह कोमल पृथ्वी के भेद हैं ।।५-६।। कटोर पृथ्वी के २० भेदशर्करा उपलं वन शिला प्रवालकामिका: 1 फकतन मरिणाचांकोरुजकः स्फटिकोमणिः ।।७।। पनरागोपडम्यरचन्द्रप्रभश्च चन्दनः । जसकान्तो षक: सूर्यकान्तोमरकतोमणिः ॥८ मोरोमनपाषाणो रुचि राख्योर्मासः स्फुटम् । अमीमेवाः बुधजयाक्षरपृष्ध्या हि विशतिः ॥९॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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