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________________ मूलाधार प्रदीप] ( २२४ ) [पंचम अधिकार वीतराग देव प्रणीत पदार्थ ही यथार्थ है-- जनतत्त्वपदार्थेभ्यः सर्वशोक्त य एष हि । तत्त्वेभ्यो नापरे तत्त्वपदार्थाः सूनृताः क्वचित् ।।१।। अर्थ-भगवान वीतराग सर्वज्ञदेव ने जो तत्व और पदार्थ बतलाये हैं वे ही यथार्थ हैं उनसे भिन्न अन्य पदार्थ कभी यथार्ण नहीं हो सकते ।।१।। सम्यग्दृष्टि का अरहंतदेव के प्रति ही श्रद्धान होना है.. अहंम्योपामिहंतृभ्योनिर्दोषेभ्यो जगत्सताम् । भुक्तिमुक्त्यादिदातारो नाम्यदेवाः शुभप्रदाः ।। अर्थ-घातिया फर्मोको नाश करनेवाले तथा अठारह वोषोंसे रहित भगवान अरहंतदेव ही देव हैं और वे ही जगत के समस्त सज्जन पुरुषों को भुक्ति और मुक्ति दे सकते हैं । उनके सिवाय अन्य कोई भी देव, देव नहीं हो सकता और न वह भुक्ति मुक्ति दे सकता है । तथा भगवान प्ररहंतदेव के सिवाय अन्य कोई देव शुभप्रद नहीं हो सकता ॥२॥ परिहन्त प्रणीत धर्म ही श्रेष्ठ हैकंवल्यभाषिताधर्माव्यतिश्रावकगोचरात् । नापरोत्रोजितो धर्मो धर्मार्थ काममोक्षदा ||३|| अर्थ-भगवान अरहतदेव ने जो मुनि और श्रायकों का धर्म निरूपण किया है वही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन पुरुषार्थोंको देनेवाला सर्वोत्कृष्ट धर्म है इसके सिवाय अन्य कोई धर्म नहीं हो सकता और न अन्य कोई धर्म पुरुषार्थोंको दे सकता है ।।६३॥ दिगम्बर गुरु ही सच्चे गुरु हैंविश्वसत्त्वहितेम्पोत्रनिग्रंमेभ्योऽपरे परा । भवामिधं तरि तारयितुन गुरव:क्षमाः ।।१४।। अर्थ—समस्त जीवों का हित करनेवाले दिगम्बर गुरु ही उत्कृष्ट गुरु हैं और वे ही इस संसार रूपी समुद्र से पार हो सकते हैं तथा दूसरों को पार कर सकते हैं । दिगम्बर गुरुओं के सिवाय अन्य कोई गुरु नहीं हो सकता है वा न अन्य किसी को पार कर सकता है ॥६४॥ जिनेन्द्रदेव प्रणीत मोक्षमार्ग ही सच्चा हैरत्नत्रयात्मकामाज्जिनोतात्परमार्थतः । नापरो विद्यते जातु मोलमार्गोति निस्तुषः ॥१५॥ अर्थ-भगवान जिनेन्द्रदेव ने मोक्षका मार्ग रत्नत्रय स्वरूप बतलाया है परमार्थ से बही मोक्षका मार्ग है और वही निर्दोष है उसके सिवाय अन्य कोई भी निर्दोष और यथार्थ मोक्षका मार्ग नहीं है ।।६५॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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