SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाचार प्रदीप ] ( २२२ ) पंचाचार की प्रमाणिकता - वर्शमाचार एखाद्या ज्ञानाचारस्ततो तः । बारित्राचार नामान्यस्तप श्राधार ऊजितः । ७८ ।। बोर्याचार हमे पंचाचाराः सर्वार्थसाधकाः । प्रोक्ताविश्वं जिनाधीमुनीनां मुक्तिसिद्धये ॥७६॥ [ पंचम अधिकार अर्थ-दर्शनाधार, शानदार, सरित्राधार, उगमाचार और वीर्याचार ये पांच पंचाचार कहलाते हैं ये पंचाचार समस्त पुरुषार्थों को सिद्धि करनेवाले हैं और समस्त तीर्थंकर परमदेवों ने मुनियों को मोक्ष की प्राप्ति के लिये निरूपण किये है। ।।७५-७६।। सम्यग्दर्शन की प्रमुखता और उसके भेदतेषामादौ प्रसिद्ध मत्सम्यक्त्वं शुद्धिकारणम् । तद्वक्ष्येहं समासेन निर्दोषं पुणभूषितम् ॥८०॥ निसर्गाभयं वृष्टयषिगमाख्यं ततोपरम् । इति द्वेषाजिनेः प्रोक्त सम्यक्त्वं भव्य देहिनाम् ॥ ८१ ॥ अर्थ – इनमें भी सबसे प्रसिद्ध सम्यग्दर्शन है जो शुद्धि का कारण है, गुणोंसे सुशोभित है और दोषों से रहित है। ऐसे सम्यग्दर्शन को ही मैं सबसे पहले कहता हूं । भव्य जीवोंके होनेवाला यह सम्यग्दर्शन भगवान जिनेन्द्रदेव ने वो प्रकार का बतलाया है एक निसगंज और दूसरा प्रधिगमज ||८०-८१|| तिसगंज सम्यग्दर्शन का स्वरूप यः पंचेन्द्रियः यो भषास्थितटाखितः । तस्यात्रकाललध्वा यो जायते निश्चयो महान् ॥ जितस्वर्वादी मुकिमा स्वयं सम् । विनागुरुपदेशाचे निसर्गतद्धिदर्शनम् ||८३ || अर्थ- जो भव्य जीव हैं, पंचेन्द्रिय है, संज्ञी है और संसाररूपी समुद्र के किनारे आ लगा है उसके काल लब्धि मिलने पर जो देवशास्त्र गुरु में तत्त्वों में और मोक्षमार्ग में बिना गुरुके उपदेश के बहुत शीघ्र स्वयं महा निश्चय हो जाता है उसको निसर्गज सम्यग्दर्शन कहते हैं ॥६२-६३ ॥ अधिगमज सम्यग्दर्शन का स्वरूपतस्यदेवागमादीनां श्रवणेनात्र या दचिः । प्रादुर्भवतिसम्मार्गे सतामषिगमं हि तत् ॥ ६४ ॥ ॥ धर्म -- -- सत्त्व और देवशास्त्र गुरु के स्वरूप को सुनकर जो मोक्षमार्ग में रुचि उत्पन्न होती है यह सज्जनों का अधिगमज सम्यग्वर्शन कहलाता है ॥८४॥ सम्यग्दर्शन के प्रोपशमिकादिक ३ भेद-तयोपशमिकं नाविकंक्तिस्त्री वशीकरम् । आयोपशमिकं चेति त्रिविधं दर्शनं मतम् ॥ ८५ ॥ ร
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy