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________________ . पंचमोधिकारः मंगलाचरणपंधाचारप्रभावेन ये प्राप्तास्ती कृच्छ्यिः । अनंतमहिमोपेता बंदे तेषां पदाम्नुजान् ॥१३७१ विजगन्नाथसंप्रार्थ्यां गताः सिद्धगति हिये। पंचाचारेण तान् सिद्धान्ममाम्यन्तातिमानपरान ।। येत्राचरन्तियत्नेनपंचाचारान् शिवाप्तये । प्राधारयन्ति शिष्याणां तानाचार्यानस्तुवेनिशम् ॥ ये व्याख्याम्तिसता सिद्धय गैः पूर्व प्रकीर्णकः । पंचाचारानुपाध्यायान् तानमामिश्रुताप्तये ॥ त्रिकालयोगयुक्ता येद्रिकंदरगुहादिषु । साधयत्यखिलाधारस्तानसाधून नौमिशक्तये ||७ अर्थ-पंचाचार के प्रभाव से ही जिन्होंने सीकर की परम लक्ष्मी प्राप्त की है, और जो अनंत महिमा से विभूषित हैं ऐसे अरहंत भगवान के चरण कमलों को मैं नमस्कार करता हूं। तीनों लोकों के स्वामी तीर्थकर भी जिनकी स्तुति करते हैं और जो इन पंचाखारों के प्रभाव से ही सिद्ध गति को प्राप्त हुए हैं ऐसे सर्वोत्कृष्ट अनंत सिद्धों को मैं नमस्कार करता हूं। जो आचार्य मोक्ष प्राप्त करने के लिये प्रयत्न पूर्वक पंचाचारों का पालन करते हैं तथा शिष्यों से प्रतिदिन पालन कराते हैं उन प्राचार्योको भी मैं स्तुति करता हूं। जो उपाध्याय मोक्ष प्राप्त करने के लिये अंग पूर्व और प्रकीरगकों के द्वारा पंचाचारों का व्याख्यान करते हैं उन उपाध्यायों को मैं श्रुतज्ञान प्राप्त करने के लिये नमस्कार करता हूं। त्रिकाल योग धारण करनेवाले जो मुनि पर्वत कंदरा वा गुफा में बैठकर समस्त पंचाचारों को सिद्ध करते हैं उन साधुओं को मैं शक्ति प्राप्त करने के लिये नमस्कार करता हूं ॥७१-७५॥ पंचाचार निरूपण की प्रतिज्ञाइत्यमून् शिरसा मत्वा पंच सत्परमेष्ठिनः । धृत्वा च स्वगुरु श्चित्ते श्रीजिनास्यज भारतीम् । ७६।। पंचाचारान् प्रवक्ष्यामि विश्वाचारप्रतिद्धये । मुनीनां स्वस्य वा नूनं समासेन शिवाय च ।।७७।। अर्थ-इसप्रकार पांचों श्रेष्ठ परमेष्ठियोंको मस्तक झुकाकर नमस्कार करके तथा अपने गुरु और भगवान जिनेन्द्रदेष के मुख से प्रगट हुई सरस्वती देवी को अपने हृदय में विराजमान करके तीनों लोकों में पंचाचारों की प्रसिद्धि करने के लिये तपा स्वयं मोक्ष प्राप्त करने के लिये वा मुनियों को मोक्षको प्राप्ति होने के लिये मैं संक्षेपसे पंचाचारों का निरूपण करता हूं ॥७६-७७॥ है।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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