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________________ पूलाचार प्रदीप ] ( १९७ ) वायस दोष का स्वरूप कायस्थ एवायपाश्यपश्यति यो दशा । काकवत्तस्य जायेतदोषो वायससंज्ञकः । १२५३| अर्थ - कायोत्सर्ग करता हुआ जो मुनि कौए के समान इधर-उधर दोनों बगलों की ओर देखता है उसके वायस नामका दोष लगता है ॥२५॥ [ चतुर्थ अधिकार खलोन दोष का स्वरूप --- कायोत्सर्ग विश्चाश्ववत्खलिन पीडितः । यो वन्तकटकंमस्तकं तस्यखलिदोमलः ||२६|| श्रर्थ- - लगाम से दुःखी हुए घोड़े के समान जो मुनि मस्तक को हिलाता हुआ और दांतों को कट कटाता हुआ कायोत्सर्ग करता है उसके खलीन नामका दोष होता है ॥२६॥ युग दोष का स्वरूप प्रो सायं तिष्ठे गपीडितवृषादिवत् । कायोत्सर्गेण तस्यास्ति युगदोषो विरूपकः ||२७|| अर्थ – जिसप्रकार जुना से दुःखी हुआ बल अपनी गर्दन को लंबी कर देता है उसी प्रकार जो मुनि अपनी गर्दनको लंबी कर कायोत्सर्ग करता है उसके युग नामका शुभ दोष होता है ।। २७ ।। कपित्थ दोष का स्वरूप efereemaraष्टिं कृत्वातिष्ठति यो मुनिः । व्युत्सर्गेण भवेत्तस्य कपित्थदोष एवहि ॥ २८ ॥ अर्थ -- जो मुनि कैथ के समान अपनी मुट्ठियों को बांधकर कायोत्सर्ग करता है उसके कपित्थ नामका दोष लगता है ।। २८ ।। शिरः प्रकंपित दोष का स्वरूपकायोत्सर्गान्वितो यः शिरः प्रकंपयतिस्फुटम् । शिरः प्रपितं दोषं लभते समलप्रदम् ॥२६॥ अर्थ - जी मुनि कायोत्सर्ग करता हुआ शिरको हिलाता जाता है उसके शिरः प्रकंपित नामका मल उत्पन्न करनेवाला दोष लगता है ॥२६॥ मूकित दोष का स्वरूप—— करोति चंचलत्वेन कायोत्सर्गस्थ संयतः । मुखनासाविकारं मस्तस्यशेषोहिमुकितः ॥३०॥ अर्थ- जो मुनि अपनी चंचलतासे कायोत्सर्ग करता हुआ भी मुख वा नासिका में विकार उत्पन्न करता रहता है उसके मूकित नामका दोष लगता है ||३०||
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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