SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाचार प्रदोष [सृतीय अधिकार हीलित नामक दोषकृत्वापरिभवं वाक्येनाचार्यादिमहात्मनाम् । क्रियाकर्म विधत्ते यः सः स्यादोलितदोषभाक ।।२०।। अर्थ-जो मुनि किसी वाक्य आदि के द्वारा आचार्य प्रादि महापुरुषों का तिरस्कार कर नंदना करता है उसको होलित नामका दोष लगता है ॥२०॥ त्रिवलित दोषकृत्वाविलितं कटयादौ सलाटेववाश्रयः । विदधाति कियाँ तस्यदोषस्त्रिवलिताद्धयः ॥२१॥ अर्थ-जो मुनि अपनी कमर में त्रिवली डालकर अथवा ललाट पर वियत्ती डालकर वंदना करता है उसके त्रिवलित नामका बोष होता है ॥२१॥ कुचित नामक दोषहस्ताभ्यां स्वशिरः स्पर्शन जानुमध्येविषाय वा यः करोतिक्रियाकर्म तस्य दोषोजकु चिलः ॥२२॥ अर्थ-जो मुनि अपने हाथ से मस्तकको स्पर्श करता हुआ अथवा अपने मस्तक को जंघाओं के बीच में रखकर वंदना करता है उसको कुचित नामका दोष लगता है ॥२२॥ दृष्ट नामक दोषप्राचार्याय श्चचुष्टोयः सम्पककरोतिबदनाम् । चान्यथा वा विशः पश्यन् इष्टदोषोत्र तस्म ॥ अर्थ-आचार्यों वा अन्य किसी के क्षेत्र लेने पर तो जो अच्छी तरह वंदना करता है और किसी के न देण्यने पर सच विशाओं की प्रोर देखता हुआ बंदना करता है उसके दृष्ट नामका दोष लगता है ॥२३॥ __मदृष्ट नामक दोषस्थक्त्वा दृष्टिपंपगोत्राचार्यादीनां च बंबनाम् । करोत्यप्रतिलेख्योगभूमि सो वृष्टिदोषभाः ।।२४।। अर्थ-जो प्राचार्यो की दृष्टि को बचाकर तथा शरीर भूमि प्रादि को बिना प्रतिलेखन किये बंदना करता है उसको अदृष्ट नामका दोष लगता है ।।२४।। संधकर मोचन नामका दोष-अर्थ में (कर) ज्यादा छपा हैसंघस्य करदामार्थ वासंघभक्तिधांचछया । क्रियते यतक्रियाकर्म तत्संघकरमोचनम् ॥२५॥ अर्थ-जो मुनि वंदना को संघका कर समझकर क्रियाकर्म दा गंदना करता है अथवा संघसे भक्ति वाहने की इच्छा से गंदना करता है उसको संधकर मोचन नाम
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy