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________________ । मूलाचार प्रदीप] ( १६६ ) [ तृतीय अधिकार का दोष लगता है ॥२५॥ लब्ध नामका दोषलषोपकरणादि य सानवः सर्वचंदनाम् । कुश्ते मान्यथा सस्य लघदोष: प्रजायते ॥२६॥ अर्थ-जो मुनि किसी उपकरण प्रावि को पाकर प्रानन्द के साथ पूर्ण गंदना करता है तथा उपकरण आदि को न पाने से वंदना नहीं करता उसको लब्ध नामका दोष लगता है ॥२६॥ अनासन्ध नामका दोषयोखोपकरणं लप्स्येहभत्रेतधियामुनिः । विषसे वंदना तस्मदोषोमालधसंशकः ॥२७॥ अर्थ-यहां पर प्राज मुझे कोई उपकरण अवश्य प्राप्त होगा इस प्रकार को बुद्धि रख कर जो मुनि वंदना करता है उसके अनालब्ध नाम का दोष लगता है ॥२७॥ हीन नामक अशुभ दोषपायंकालाहीमां सस्परिणामयिजिताम् । तनोति बंधनां सस्य हीनदोषो शुभोभवेत् ॥२८॥ अर्थ-जो मुनि शब्द अर्थ से रहित, काल से रहित और शुभ परिणामों से रहित वंदना करता है उसके होन नामका अशुभ बोष लगता है ॥२८॥ उत्तरचूलिका दोषबंदना स्तोक कालेन निर्वस्यकार्यसिद्धये । बंबमा भलिकाभूतस्यालोचनात्मकस्य वै ।।२९।। कालेनमहत्ता कृत्वा निर्वर्तनं करोति यः । वंदना स्याच्चतस्योत्तर चूलिकालयोमलः ॥३०॥ अर्थ-जो मुनि अपने कार्य की सिद्धिके लिये बंदना को बहुत थोड़े समय में पूर्ण कर लेता है तथा गंदना की चूलिका भूत जो आलोचना है उसके करने में बहुत समय लगाता है उसको उत्तर चूलिका नामका दोष लगता है ॥२६-३०॥ मूक नामका दोषमूकवरमुखमध्येयो वंदनां वितनोति वा । कुर्वन हस्तायहकार संज्ञां स मूक बोषवान् ।।३१॥ अर्थ-जो मुनि गूगेके समान मुखके भीतर ही भीतर नंदना करता है अथवा हाय आदि के इशारे से अहंकार को सूचित करता हुभा चंदना करता है उसको मूक नामका दोष लगता है ॥३१॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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