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________________ मूलाचार प्रदीप] (१५६) [ तृतीय अधिकार साधु कहलाते हैं उसीप्रकार निर्गुणी पुरुष भी गुणी पुरुषों की सेवा करने से इस लोक में गुणी ही कहलाते हैं ॥१७॥ किमन्न बहुनोक्तेन गुणांश्चयोषांश्च देहिमाम् । संसर्गजनितान् मन्ये सर्वान् बुढचा न मान्यथा ।। ___ अर्थ-बहल कहने से क्या थोड़े से में इतना समझ लेना चाहिये कि जीवोंके जितने गुण वा दोष हैं वे सब संसर्गजन्य ही माने जाते हैं । न तो वे गुण दोष बुद्धिसे उत्पन्न होते हैं और न किसी अन्य प्रकार से उत्पन्न होते हैं ॥९७६। नी व पुरुषों की संगति कभी नहीं करनी चाहिये--- विज्ञायेश्युत्तमानां च संगमुक्त्वा गुणाधिभिः । क्वचित्संगो न कर्तव्यो नोचानां कार्यकोटिषु ।। __ अर्थ-यही समझकर गुरण चाहनेवाले पुरुषों को करोड़ों कार्य होनेपर भी उत्तम पुरुषोंके संसर्गको छोड़कर कभी भी नीच पुरुषोंका संसर्ग नहीं करना चाहिये ।।६०॥ आदर्श मुनिराज की भक्ति करना चाहियेमहानससमित्याय : कलितान धर्मभूषितान् । बाह्यान्तयनिमुकाम युक्तान् सगुणसम्पदा ॥ मुमुक्षून श्रमणानित्यं ध्यानाध्ययनतत्परान् । वंदस्व परया भक्रया स्वं मेषाषिन् शियाप्तये ।। अर्थ- इसलिये हे बुद्धिमान् ! जो मुनि महाव्रत और समिति आदि से सुशोभित हैं, धर्मसे विभूषित हैं, बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रहों से रहित हैं, श्रेष्ठ गुणरूपी संपदा से सुशोभित हैं जो ध्यान और अध्ययन करने में सदा तत्पर रहते हैं और मोक्ष की इच्छा करनेवाले हैं. ऐसे मुनियों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये परम भक्ति पूर्वक गंदना कर ।।६८१-६६२।। प्रारमध्यान में लीन मुनि ही संसार में वंदनीय हैं-- सम्यग्बुजानधारित्रतपोविनय भूषणः । भूषिता निर्ममानित्यंसर्वांगादिवस्तुषु ।।१८३।। सत्ता गुणपराणां च ये पक्षागुणवाविनः । प्रात्मध्यानरतास्तेत्र वंदनीया न बापरे ! __ अर्थ --जो मुनि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्वारिन तपविनय आदि आभूषणों से सुशोभित हैं, जो अपने शरीर आदि पदार्थों में भी मोह रहित हैं, जो गुणों को धारण करनेवाले सज्जनों के गुण वर्णन करने में निपुण हैं और जो आत्मध्यानमें लोन हैं ऐसे मुनि हो इस संसार में वंदनीय है अन्य नहीं ॥६३-६८४॥ घ्यान अध्ययन से रहित मुनि को नमस्कारादि नहीं करना चाहिएकेनधि तुना ध्याकुलचिसा मुनयोप्यहो । प्रमता निद्रिता: सुप्ता विफयाविरताशयाः ||६|
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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