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________________ मूलाचार प्रदीप] ( १६०) [ तृतीय अधिकार प्राहारं यदि कुर्वाणा नोहार मा परान्मुक्षा।। नाही सतां नमस्कारे ध्यानाध्यपनवनिताः ।। __ अर्थ-जिन मुनियों का चित्त किसी भी कारणसे व्याकुल है, जो प्रमादरी हैं, निद्रित हैं, सोए हुए हैं, विकथा प्रादि करने में लीन हैं, जो आहार वा नीहार कर रहे हैं अथवा जो परान्मख हैं और जो ध्यान अध्ययनसे रहित हैं ऐसे मुनि सज्जन पुरुषों को कभी नमस्कार करने योग्य नहीं होते ।। ८५-६८६॥ मैं आपको वंदना करना चाहता है (ग्रासन शुद्ध) इसप्रकार सूचित करना चाहिएपर्यकाघासनस्था ये शुभध्यामपरायणाः । गुर वः शांतरूपाः शुद्धाचार्यादयोखिलाः ॥१७॥ तेभ्य: स्वस्यान्तरे स्थित्वा हस्तमात्रेमुमुक्षयः । प्रतिलेख्य घरापादगुहादोश्च प्रवंदमाम् ।।१८॥ अर्थ-जो मुनि पर्यकासन वा अन्य किसी आसन से विराजमान हैं जो गुरु शुभध्यान में तत्पर हैं और अत्यन्त शांत हैं ऐसे शुद्ध प्राचार्य उपाध्याय वा साधु है उनसे एक हाथ दूर बैठकर तथा पृथ्वी, पाद, गुह्य, इंद्रिय प्रादि का प्रतिलेखन कर (पीछीसे शुद्ध कर) "मैं आपके लिये गंदना करना चाहता हूं" इसप्रकार उनको सूचित कर मोक्ष की इच्छा करनेवाले मुनियोंको उनकी बंदना करनी चाहिये सथा मोक्ष प्राप्त करने के लिये उनका कृतिकर्म करना चाहिये ।।६८७-६८८॥ कल्याण करने वाली वंदना करनी माहिएभवद्भ्यः कर्तुमिच्छाम इति विनाय संयताः । कुर्वतु पंदतां तेषां कृतिकारिणमुक्तये ||६|| मायागर्वा विदूरस्थैः शुद्धभावरनुढतैः । जनर्याजः सुसंवेगं कृतिकर्मविषायिनाम् ।। प्राचार्योचं जंगबंध स्तयोग्यमधुरोक्तिभिः। बंदनाभ्युपगंसध्या स्वान्ययो शुभकारिणी ॥१०॥ अर्थ-जो आचार्यादिक माया अहंकार प्रादि से रहित हैं, शुद्ध भावों को धारण करनेवाले हैं, उद्धततासे रहित हैं, संवेगको उत्पन्न करनेवाले हैं और जगतबंध है ऐसे आचार्य उपाध्याय और श्रेष्ठ साधुओं को योग्य और मधुर वचन कहकर कृति कर्म करने वालों की वह अपना और दूसरों का कल्याण करनेवाली बंदना स्थोकार . करनी चाहिये 1168-६६०॥ मुनियों को गुरु वंदना कत आवश्यक हैप्रश्ने चालोचना काले स्वापराधे सुसंयतः । गुरूणां वंदना कार्यास्वाध्यायावश्यकादिषु ||६| ____ अर्थ-किसी प्रश्नके पूछने पर, आलोचना करते समय, अपना कोई अपराध हो जानेएर और स्वाध्याय आदि आवश्यक कायों के करते समय मुनियों को अपने गुरु की वंदना करनी चाहिये ॥६६१॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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