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________________ मूलाचार प्रदीप (१५८ ) [ तृतीय अधिकार अर्थ--यही समझकर सज्जन पुरुषों को किसी शास्त्र आदि के लोभसे भी इन भ्रष्ट मुनियों का संसर्ग नहीं रखना चाहिये क्योंकि इनका संसर्ग अपकीति करने वाला है, व्रतों को जड़ मूलसे हरण करनेवाला है और निदनीय है ।।६७२॥ पुष्प-माला का दृष्टांतपुष्पमालाहंतो यद्वरसंपविद्यतां ब्रजेत् । अस्पर्शता व लोकेहि मृतकस्य न संशयः ।।६७३|| तद्वन्महात्मनां संगात्पूच्यतां यांति संयताः । नीचात्मनामिहामुन्न नियतां च पवेपदे ॥१४॥ अर्थ- देखो जिस प्रकार भगवान अरहंतदेवके संसर्गसे पुष्पमाला भी गंदनीय गिनी जाती है और मृत पुरुष के (मुर्दा के) संसर्ग से वही पुष्पमाला अस्पृश्य छुने अधोमा हानी झाली है उ सार संयमी सग भी महात्माओं के संसर्ग से पूज्यताको प्राप्त होते हैं और नीचों के संसर्ग से इस लोक और परलोक में पद-पद पर निंदनीय हो जाते हैं । इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।।९७३-६७४॥ संसर्ग के कारण गुण मौर दोष-- ययापदावियोगेन सुगंधं शीतल जलम् । भाजनानलसंपत्सितसं जायसराम् ||१७५|| सथानोसमसंगेनोत्तमोगी तद्गुणः समम् । भवेनीचप्रसंगेन नीचश्चतद्गुणः सह ।।१७६।। अर्थ- देखो कमल प्रादि के संयोग से जल सुगंधित और शीतल हो जाता है तथा बर्तन और अग्निके संसर्गसे वही जल अत्यन्त गर्म हो जाता है । उसी प्रकार यह पुरुष भी उत्तम पुरुषों के संसर्ग से उनके उत्तम गुणों के साथ-साथ उत्तम बन जाता है और नीच पुरुषों के संसर्ग से उनके नीच गुणों के साथ-साथ नोच हो जाता है। १९७५-६७६॥ साहकार भो खोटी संगति से चोर कहलाता हैप्रचौरमौर संसर्गाचमा चौरोत्र कथ्यते । साधुश्चासाधुसंसर्गावसाघुर्नान्यथा तथा ॥९७७॥ अर्थ--जिस प्रकार कोई साहूकार भी चोर के संसर्ग से चोर कहलाता है। उसी प्रकार साधु पुरुष भी असाधुओं के संसर्ग से असाधु ही कहलाता है इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।।६७७॥ निगुणी भी गुणी पुरुष की मंगति से गुणवान् बन जाता हैप्रसाधुः प्रोभ्यते साधुर्यथात्र साधुसेवया । निगुरोपि तथा लोकेगुणी च गुणिसेवया ॥६॥ अर्थ-इस संसार में जिस प्रकार असाधु पुरुष भी साधु की सेवा करने से
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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