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वे ऐसे हो सम्त शिरोमणि हैं जिनकी रचनायें राजस्थान के शास्त्र भण्डारों का गौरव हा रही हैं। इस प्रदेश का ऐसा कोई पम्यागार नहीं जिसमें उनको कम से कम तीन चार कृतियां संग्रहीत मही हो। वे साहित्य गगन के ऐसे महान तपस्वी सन्त हैं जिनकी विद्वत्ता पर देश का सम्पूर्ण विद्वत् समाज गर्व कर सकता है। वे साहित्य गगन के सर्य हैं और अपनी काव्य प्रतिमा से गत ७०० वर्षों में सभी को पालोकित कर रखा है । उन्होंने संस्कृत एवं राजस्थानों में से चार नहीं, पचासों रचनायें बिल की भौर काध्य, पुराण, चरिस, कथा, अध्यात्म, सुभाषित मादि विविध विषयों पर अधिकार पूर्वक लिम्ला । गुजरात, बागड़, मेवाह एवं दहाहक प्रवेश में जिनके पचासों शिष्य प्रशिष्यों ने उनकी लियों को प्रतिलिपियां करके यहां के शार अगहारों को मोभा में अभिसद्धि पी! और गत ५००
यों से जिमको कृतियों का स्वाध्याय एवं पठन पाठन का समाज में सर्वाधिक प्रचार रहा है । जिनमें किसने ही पुराण एवं चरित्र प्रन्यों को हिन्दी टोकायें हो चको है तथा अभी तक भी यही क्रम चालू है। ऐसे महाकवि का संस्कृत साहित्य के इतिहास में कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलना निसन्देह विचारणीय है। "राजस्थान के जन सन्त व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व" पुस्तक में सर्व प्रथम लेखक ने भट्टारक सकलकोसि पर जब विस्तृत प्रकाश डाला तो विद्वानों का इस मोर मान गया और उदयपुर विश्वविद्यालय से स० विहारीलालजी जैन ने भट्टारक सकलकीति पर एक शोष प्रबन्ध लिख कर उनके जीवन एवं कर्तृत्व पर गहरी खोज की और बहुत ही सुन्दर रोति से उनका मूल्यांकन प्रस्तुत किया। प्रसन्नता का विषय है कि उदयपुर विश्वविद्यालय ने शोध प्रबन्ध को स्वोकत करके श्री बिहारीलाल जैन को पी. एच. लो. की उपाधि से सम्मानित भी कर दिया है। डा० अंन ने सकलफीति को प्रायु एवं जीवन के सम्बन्ध में कुछ नवीन तथ्य उपस्थित किये हैं। लेकिन सफलफोति के विशाल साहित्य को देखते हुए अभी उनका और भी विस्तृत मूल्यांकन होना शेष है। अभी तक शिमों ने सब के रूप में उनके साहित्य का नामोल्लेख किया है तथा उनका सामान्य परिचय पाठकों
समा उपस्थित किया है। किन्तु उनको प्रत्येक कृति हो अपूर्व कृति है जिसमें सभी प्रकार को हाल सामग्री उपलब्ध होती है। उन्होंने काय लिखे. पुराण लिखे एवं कथा साहित्य लिखा और जन साधारए में उन्हें लोकप्रिय बनाया। उन्होंने संस्कृत में ही नहीं, राजस्थानी भाषा में भी लिखा। समें भट्टारक सकल कीति के महान् व्यक्तित्व को देखा एवं परखा जा सकता है । जीवन परिचय
भट्टारक सकलकीति का जन्म संवत् १४४३ ( सन १३८६ ) में हुआ था। इनके पिता का नाम करमसिंह एवं माता का नाम शोभा था। ये अपहिलपुर पट्टण के रहने वाले थे। इनको जाति
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१. साहित्य शोध विभाग श्री नि.
प. क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा प्रकाशित ।
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