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________________ मुलाचार प्रदीप ( १२६ ) [ तृतीय अधिकार __ अभव्य जीव भी इसके प्रताप से कर्व अंबेयक तक क्यों जाता है ? व्यसामायिकेनात्राभल्योमिनेन्द्रवेषभूत् । महातपाःसुशास्त्रज्ञःऊन न वेयकं व्रजेत् ॥७७१३॥ अर्थ-- भगवान जिप्रक्षेव कषको धारण करनेवाला (मुनि लिंग धारण करनेवाला) महा तपस्वी और अनेक शास्त्रों का जानकार अभव्य जीव भी इस द्रव्य सामायिक के प्रभाव से अर्ध्व गवेयफ तक पहुंचता है ॥७७१॥ भरत चक्रवर्ती का दृष्टांत-- बह्वारम्भोद्भबं पापं क्षिपित्वा प्रत्यहं महत् । शुद्धसामायिकेनैव निदयागहणेनच ।।७७२।। शिप्तकर्मादिमश्चक्री भरतेशोनुसंथमम् । गृहीत्वा ध्यानमालन्य शुक्लं कर्मवनानलम् ।।७७३।। घटिफारद्वयमात्रेण हत्वा धासिधनुष्टयम् । साद्ध वाचनैविध्यं प्रापानन्तचतुष्टयम् ।।७७४।। अर्थ-देखो प्रथम चक्रवर्ती महाराज भरत महारंभसे उत्पन्न हुए प्रतिदिन के महापापों को शुद्ध सामायिक के द्वारा ही नष्ट करते थे, तथा निदा गहाँ के द्वारा बहुत से कर्मों को नष्ट करते थे । तदनंतर उन्होंने संयम धारण कर कर्मरूपी वन को जलाने के लिये अग्निके समान ऐसे शुक्ल ध्यानको धारण किया था और दो ही घड़ी में चारों घातिया कर्मों को नष्ट कर देव और इन्द्रों के द्वारा होनेवाली पूजाके साथ साथ दिव्य अनंत चतुष्टय प्राप्त कर लिया था ॥७७२-७७४।। योगियों के लिये, सामायिक से बढ़कर और कोई उपयुक्त साधन नहींबहनोक्तेन कि साध्यं नकिचिशिवसिद्धये । सामायिकेन सवृशं विद्यते योगिनांक्वचित् । ७७५।। अर्थ-बहुत कहने से क्या लाभ है थोड़े से में इतना समझ लेना चाहिये कि योगियों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये इस सामायिक के समान और कोई पदार्थ किसी स्थान में भी नहीं है ॥७७५।। ___ बुद्धिमानों को प्रयत्न पूर्वक सदा परम शुद्ध सामायिक करना चाहिये--- ज्ञात्वेत्यस्यानमाहात्म्यमुत्थाय बुधसत्तमाः । योगशुद्धि विषाय प्रसिलेण्यांग परातलम् ।।७७६।। स्वहस्लो कुइमलीकृत्य कालेकाले शिषाप्तये । कुर्वन्तु सर्वथा यत्नात युद्ध सामायिकं परम् ॥ अर्थ-इसप्रकार इस सामायिक के माहात्म्य को समझ कर श्रेष्ठ बुद्धिमानों को मोक्ष प्राप्त करने के लिये उठकर खड़ा होना चाहिये तथा मन वचन कायको शुद्ध कर, अपने शरीर और पृथ्वी को देख शोधकर अपने दोनों हाथ जोड़कर सामायिक के प्रति समय पर प्रयत्नपूर्वक सदा परम शुद्ध सामायिक करना चाहिये ॥७७६-७७७॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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