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________________ मूलाचार प्रदीप] (१२५) [तृतीय अधिकार अर्थ-भगवान जिनेन्द्रदेव ने पांचों इन्द्रियरूपी पशुओंको बांधने के लिये इस सामायिक को रस्सी के समान बतलाया है और मनरूपी बंदर को रोकने के लिये इसी सामायिक को सांकल के समान बतलाया है ॥७६५।। यह सामायिक सर्पको कीलने के लिये महामंत्र भी हैसामायिकमहामंत्र संसाररोगकोलने । बुधा जगुश्च साधूनां कर्मारण्येनसोपमम् 11७६६।। अर्थ-विद्वान लोग संसाररूपी सर्पको कोलने के लिये (वशमें करने के लिये) इस सामायिक को महामंत्र बतलाते हैं तथा साधुओं के कर्मरूपी चनको जलाने के लिए अग्नि के समान कहते हैं ।।७६६।। सामायिक रूपी अमृत पानका फलसामायिक सुधापानं ये कुर्वन्ति निरन्तरम् । सुखनिस्तेचिरेणस्युर्जन्ममृत्युविषासिगाः ॥७६७।। अर्थ-जो मुनि इस सामायिक रूपी अमृत पानको निरन्तर करते रहते हैं वे जन्म मरणरूपी विषय से छूट कर सदा के लिये सुखी हो जाते हैं ।।७६७॥ सामायिक के संस्कारों का फलसंचोयते परंधर्म स्वर्गमुक्तिवशीकरम् । शुद्ध'च क्षीयते पाएं सामायिकात्तचेतसाम् ॥७६८।। ___ अर्थ-जिनके हृदय में सामायिक की वासना भरी हुई है उनके पाप सब नष्ट हो जाते हैं, और प्रत्यन्त शुद्ध तथा स्वर्ग मोक्ष को वश करनेवाला परम धर्म संचित होता है ॥७६८॥ मोक्ष लक्ष्मी स्वयं झुकती हैमुक्तिश्रीःस्वपमागस्यासमासामायिकात्मनः । वृणोत्यहो पियासाढ़ काकचादेवयोषिताम् ॥ अर्थ—सामायिक करनेवाले पुरुषों को मोक्षरूपी लक्ष्मी समस्त लक्मियों के साथ आसक्त होकर स्वयं आकर स्वीकार करती है फिर भला देवियों की तो बात ही क्या है ॥७६६॥ सामायिक के प्रताप से श्रावक की समृद्धिसामायिकेम सागरा हिंसाधिपंचपासकाम् । हत्योपाज्य परं धर्म यान्ति स्वर्गचषोडशम् ॥७७०॥ अर्थ-इस सामायिक के प्रभाव से श्रावक भी हिंसाविक पांचों पापोंको मष्ट ___ कर और परम धर्मको संचित कर सोलहवें स्वर्ग तक पहुंचते हैं ॥७७०॥ NE
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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