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________________ 4finiप्रार्थ-स्वभाष से ही सरल युद्धि और मंदबुद्धि को धारण करने के कारण धे लोग बिना विस्तार से बतलाये योग्य अयोग्य मुनियों के पूर्ण चारित्रको व्यक्तरीति से नही जानते ५। इसी कारण से भगवान वृषभवेष और भगवान महावीर स्वामीने उन शिष्यों का अनुग्रह करने के लिये मोक्षको प्राप्ति के लिये दोनों प्रकारके संयम बतलाये हैं ।।७५८-७५६॥ सामायिक में सब अन्तर्भूत हैं - प्राख्यातु'किलविज्ञातु पृथग्भाधयितु तथा । महानतानि पंर्वद्रगुप्तयःसमितीस्तथा ॥७६०।। लेपि सर्वे जिनेशानां शिष्याःशुद्धिशिवाप्तये । परन्तिसर्वदोस्कृष्टं शुद्ध सामायिकं शुभम् ॥७६१।। अर्थ---कहने समझने मौर अलग अलग पालन करने के लिये महावत पांच हैं गुप्तियां तीन हैं और समितियां पांच हैं। भगवान जिनेन्द्रदेवके शिष्य आत्म शुद्धि और मोक्ष प्राप्त करने के लिये इनका पालन करते हैं तथापि वे शुभ शुद्ध और सर्वोत्कृष्ट सामायिक को अवश्य करते हैं क्योंकि सामायिक में सब अन्तभूत हैं ॥७६०-७६१।। सामाजिक बद... सामायिकवलायोगीलगा नक्षिपेच्चयत् । कर्मजालं महत्तन्न तपसा घर्षकोटिभिः ॥७६२॥ अर्थ-मुनिराज इस सामायिक के बलसे आधे क्षणमें जितने कर्मों को नष्ट कर डालते हैं उतने महा कर्म करोड़ों वर्षों के तपश्चरण से भी नष्ट नहीं हो सकते ॥७६२॥ यह परम शंवर का हेतु है-- सामायिकवलेनासौ करोति संवरंपरम् । फर्मणां विधिनाध्यानी महती सुनिराम् ॥७६३॥ अर्थ-ध्यान करनेवाला योगी इस सामायिक के बलसे परम संवर करता है और विधि पूर्वक कर्मों को महा निर्जरा करता है ॥७६३॥ सामायिक की सामन्यं से ध्यान धारणादिसामायिकस्य सामर्थ्याविधत्ते मुनिपुगवः । ध्यानानि ते प्रमायेते केवलज्ञानदर्शने ॥७६४॥ अर्थ-मुनिराज इस सामायिक की सामर्थ्य से ध्यान धारण करते हैं और ध्यानसे केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त करते हैं ।।७६४॥ __पांचों इन्द्रियों व मनको वशमें करने के लिये यह सामायिक रस्सी के समान है-- सामायिकं जिनामातुःपंचाक्षमगबंधने । पाशंघचखलातुल्यं मनोमर्फटरोषने ॥७६५।।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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