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________________ मुलाचार प्रदीप] ( १२७ ) [ तृतीय अधिकार अपने कर्मों का नाश करने के लिए शुद्ध सामायिक करोअखिलगुरणसमुद्र मुक्तिसौधानमार्ग निरुपमसुखहेतु धर्मबीजं विशुद्धम् । दुरित तिमिरभानु घोषनाः कर्महान्य कुरुत हृदयसुखधा शुद्धसामायिक भोः ।।७७ ।। अर्थ-यह सामायिक समस्त गुणों का समुद्र है, मोक्षरूपी राजभवनका मुख्य मार्ग है, मोक्षरूपी अनुपम सुखका कारण है, धर्मका बीज है, अत्यन्त विशुद्ध है, और पापरूपी अंधकार को दूर करने के लिये सूर्यके समान है । इसलिये हे बुद्धिमान लोगों अपने कर्मो को नाश करने के लिये शुद्ध हृदयसे शुद्ध सामायिक धारण करो । प्रतिदिन नियम पूर्वक इसको करते रहो ।।७७८॥ __ दूसरे स्तव का स्वरूप* इमां सामायिकस्थादौ नियुक्ति प्रतिपाधव । समासेन ततो वक्ष्ये नियुक्त मत्स्तवस्य च ॥७७६ ।। अर्थ-इसप्रकार पहले सामायिक का स्वरूप कहा अब आगे संक्षेप से दूसरे स्तव वा स्तुति नामके आवश्यक का स्वरूप कहते हैं ॥७७६॥ चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति को स्तबन अावश्यक कहते हैंचतुविशति तीर्थेषां विजयस्वामिना च यत् । साथै नीमादिभिः षभिःसारलोकोत्तमः ।। स्तवनंक्रियते दक्षः प्रणाम भक्तिपूर्वकम् । भावार्धनं महापानं सस्तवः शिवशर्मवः ॥७८१।। अर्थ-भगवान चौबीस तीर्थकर तीनों लोकों के स्वामी हैं उनके सार्थक नामों के द्वारा वा सारभूत लोकोत्तम गुरषों के द्वारा प्रणाम और भक्ति पूर्वक छह प्रकार से जो चतुर पुरुषों के द्वारा स्तवन किया जाता है उनकी भावपूजा की जाती है वा उनका * महा ध्यान किया जाता है उसको मोक्ष सुख देनेवाला स्तवन कहते हैं ।।७८०-७८१॥ स्तवन भी छह प्रकार का हैस नामस्यापनावष्पोत्रकालो जिनोजषः । भावस्थेति निक्षेपःस्लमस्पषड्विधः स्मृतः ।।७८२॥ अर्थ-वह स्तवन भी नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्रकाल भावके भेदसे छह प्रकार है । यह छह प्रकार का स्तवन का निक्षेप है और भगवान जिनेन्द्रदेव का कहा हुआ है ।।७८२।। स्तवन का फलतीर्देशनाममानोधरणेमचसता दुतम् । विघ्नमालानि पापानि प्रलीयन्ते रुजादयः ॥७८३॥ . अर्थ-चौबीसों तीर्थकरों के नाम मात्रके उच्चारण करने से सज्जनों के सब
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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