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________________ मूलाचार प्रदीप] ( १२२ ) [ तृतीय अधिकार अर्थ-जो पुरुष अपनी शक्ति से मनको जीतकर चारों प्रकार के धर्मध्यानको और चारों प्रकार के शक्लध्यान को प्रतिदिन धारण करता है उसीके उत्तम सामायिक होता है ॥७४६।। योगियों को प्रतिदिन परम सामायिक करना चाहियेसर्वत्र समताभाव कारणाय जिनमतः । योगिनां परमो नित्यं सामायिकास्यसंयमः ।।७४७।। ___ अर्थ-भगवान जिनेन्द्रदेव ने योगियों के लिये सर्वत्र समता भाव धारण करने के लिये प्रतिदिन परम सामायिक करना और प्रतिदिन इन्द्रिय संयम पालन करना ही बतलाया है ।।७४७।। _गृहस्थों के सामायिक का महत्वसर्वसावधयोगादिषजनार्य शुभाप्तये । सामायिक गृहस्थानां प्रोक्तं धर्मशमाय छ । ७४।। ___अर्थ-पहस्थों को ममस्त पापरूप पोगों का त्याग करने के लिये, शुभ की प्राप्ति के लिये तथा धर्म और कल्याण की प्राप्ति के लिये एक सामायिक ही बतलाया है ॥७४८॥ श्रावकों का शुभ सामायिकमरवेति श्रावकं नित्यं कार्य सामायिकं शुभम् । दिनमध्ये त्रिवारं च धर्मध्यानाय समणे ॥७४६।। अर्थ-यही समझकर श्रावकों को धर्मध्यान की प्राप्ति और आत्मकल्याण करने के लिये प्रतिदिन विनमें तीन बार शुभ सामायिक करना चाहिये ॥७४६।। कौन गृहस्थ भावलिंगी मुनि के समान माना जाता है ? यतः कुर्वन् ग्रहो नूनं शुद्ध सामायिक परम् । सर्वत्र समतापानो भालिंगो यतिर्भवेत् ।।७५.०॥ अर्थ- क्योंकि सर्वत्र समता भाव धारण करता हुआ और शुद्ध उत्कृष्ट सामायिक करता हुआ गहस्थ अवश्य ही भालिगी मुनि के समान माना जाता है ।।७५०॥ भावलिंगी गृहस्थ की कथाअरण्ये धायकः कश्चित् धीरस्त्यत्तसपुर्महान् । निष्कपं ध्यानमासम्म व्यपात्सामायिकं परम् ॥ शरेण केनचिद्विद्धो मगस्तस्य पदान्तरे। प्रविश्यातः कियकालं स्थित्या वेदनया मृतः ।।७५२।। तपापि न मनागेषो चलस्सामायिकात्सुधीः । अस्पोगमे कथा ज्ञेया गृहिणो भावलिगिमः ।।७५३।। अर्थ-कोई एक धीरवीर महा श्रावक अपने शरीर से ममत्व का त्याग कर
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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