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________________ मूलाचार प्रदीप] ( १२१) [तृतीय अधिकार अर्थ-जिस पुरुष के रागढ़ोष इन्द्रियां और मोह प्रादिक किसी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं कर सकते, जिसके समता वा शांत परिणामों से रागद्वेषादिक सब शांत हो गये हैं उसके सर्वोत्कृष्ट सामायिक होता है ।।७४०॥ किसके सर्वोत्कृष्ट सामायिक माना जाता है ? कषायाः फोघमानाधाश्यत्वारा पेन निजिताः । क्षमामलार्जवासंगगुणस्तभ्यक्तिघातकः ।।७४१॥ हास्याद्याः षट् त्रिवेदाश्च वैराग्यब्रह्म संयमैः । अन्ये दोषाच्च तस्यात्र परं सामायिक मतम् ।। अर्थ--जिस महा पुरुष ने क्रोधाविक की शक्तिको घात करनेवाले क्षमा माय आजव और प्राचिन्य गुणोंसे क्रोध-मान-माया-लोभ इन चारों कषायों को जीत लिया है तथा वैराग्य ब्रह्मचर्य और संयम से तीनों वेद और हास्यादिक नोकषाय जीत लिये हैं तथा जिसने और भी समस्त दोष जीत लिये हैं उसके सर्वोत्कृष्ट सामायिक माना जाता है ।।७४१-७४२॥ किमके शुभ सामायिक होता हैमाहाराद्याश्चतुः संज्ञाः लेश्यास्तिस्रोऽशुभाभुवि । न यान्ति विकृति यस्य तस्य सामायिक शुभम् ॥ अर्थ-जिस पुरुष के आहार आदिक चारों संशायें तथा तीनों अशुभ लेश्याएं कभी विकार भावको प्राप्त नहीं होती उसीके शुभ सामायिक माना जाता है ।।७४३॥ किसके उत्कृष्ट सामायिक होता है-- पस्य पंचेन्नियादान्तास्तपोभिःस्पर्शनावयः। शताःकतु विकार न तस्य सामायिक महत् ।।७४४॥ अर्थ-जिसके तपश्चरण के बल से स्पर्शनासिक पांचों इन्द्रियां शांत हो गई हैं और कभी भी विकार उत्पन्न करने में समर्थ नहीं हो सकतों उसी के उत्कृष्ट सामायिक होता है ।।७४४॥ अशुभध्यानों को छोड़कर शुभध्यान वाला ही श्रेष्ठ सामायिक करता है-- या॑नाम्यात रौद्राणि योष्टौ नित्यं परित्यजेत् । प्रशस्तध्यानमालंम्य तस्य सामायिक परम् ।। अर्थ-जो पुरुष धर्मध्यान वा शुक्लध्यानको धारण कर चारों प्रकारके प्रातध्यान और चारों प्रकार के रौद्रध्यानों का त्याग कर देता है उसी के श्रेष्ठ सामायिक कहा जाता है ॥७४५॥ __ मनको जीतने वाले के उत्तम सामायिक होता हैप्यानं चतुषि धम् शुक्लं ध्यायति पोन्बाहम् । जिस्वा ममो बलात्तत्य तिष्ठत्सामाग्रिकोत्तमम् ॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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