SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाधार प्रदीप ] ( १२० ) [ तृतीय श्रधिकार अर्थ- जो महापुरुष समस्त घोर उपसर्ग और तीव्र परिषहोंको जीत लेता है, जो व्रत, समिति, गुप्ति, समस्त यम, नियम, सारभूत समस्त भावनायें और शुभ ध्यान से सुशोभित रहता है जो सर्वत्र निश्चल बना रहता है वह उत्कृष्ट सामायिक करने वाला कहा जाता है ।।७३३-७३४।। परम ज्ञानी की सामायिक— समवायं स्वरूपं च यो जानाति स बुद्धिमान् । द्रयाणां सद्गुणानां च पर्यायारणा जिनागमे ॥ हेयोपादेयत्वं च कारणं बंध मोक्षयोः । तस्य सामायिकं विद्धि परमं ज्ञानिनो भुवि ।।७३६ ॥ श्रर्थ - जो बुद्धिमान पुरुष स्वपर पदार्थों के संबंध के स्वरूप को जानता है जिनागमके अनुसार द्रव्य गुरण और पर्यायोंके स्वरूपको उनके संबंध के स्वरूपको जानता है, और उपादेय तवों को जानता है और बंध मोक्षके कारणों को जानता है उस परम ज्ञानी के सामायिक होता है ।।७३५-७३६।। उत्तम सामायिक करनेवाले का स्वामी विरतः सर्वसाद्य निजिताक्षमना महान् । महातपा स्त्रिगुप्तो यः सामायिकी स उत्तम । ॥ अर्थ - जिसने समस्त पापों का त्याग कर दिया है, जिसने इन्द्रिय और मन को जीत लिया है, जो उत्कृष्ट है, महा तपस्थी है और तीनों गुप्तियों को पालन करने वाला है वह उत्तम पुरुष सामायिक करनेवाला कहा जाता है || ७३७॥ उसी पुरुष के श्रेष्ठ सामायिक ठहर सकता है यस्य सन्निहितवात्मा संयमे नियमे गुणे । शमे तपसि तस्यैव तिष्ठेत्सामायिकं परम् ॥७३५॥ अर्थ --- जिस महा पुरुष का श्रात्मा संयम में, नियम में, गुणों में, समता में और तपश्चरण में लगा हुआ है उसी पुरुषके श्रेष्ठ सामायिक ठहर सकता है || ७३८ || कैसे भाव रखने वाले सज्जन के सामायिक होता है ? यः समः सर्वभूतेषु त्रसेषु स्थावरेषु च । सादृश्यः स्वात्मनो भावस्तच्च सामायिकं सत्ताम् ।।७३९ ।। अर्थ - जो पुरुष समस्त त्रस स्थावर जीवों में समता धारण करता है समस्त जीवों को अपने आत्माके समान मानता है । इसप्रकार के भाव रखने वाले सज्जन के सामायिक होता है ॥७३६॥ free सर्वोत्कृष्ट सामायिक होता है ? वाक्षमोहाद्या विकृति जनयन्ति न । शमाय वंमिता यस्य तस्य सामायिकं महत् ॥ ७४ ॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy