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मूलाचार प्रदीप ]
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[द्वितीय अधिक्ष पादान निक्षेपण समिति का पालन करने का फलमवेति मुनयो नित्यं पालयन्तु दयाप्तये । इमां सुसमिति पत्नाद्दर्शन प्रति लेखनः ॥५५६॥
वृषभमुनि निषेव्या स्वर्गसोपानपंक्ति शिवशुभगति वीयीं निर्जरा संवरस्म । मुवि सकल विधीनां हेतुमूतो मुनीन्द्राः प्रभजत समिति चादान निक्षेपणाल्याम् ।।५८७।।
अर्थ-यही समझकर मनियों को जीवोंको क्या पालन करने के लिये अच्छी तरह देखकर और अच्छी तरह पीछी से शोध कर अपना पूर्वक इस आधान निधन समिति को पालन करना चाहिये । इस आवान निक्षेपण समिति को सर्वोत्कृष्ट मुनि भी पालन करते हैं, यह स्वर्गके लिये सीढ़ियों को पंक्ति है, मोक्षका मार्ग है तथा शुभगतियों का मार्ग है और कर्मोको निर्जरा की तथा संवर की समस्स विधियों का कारण है। अतएव हे मनिराजों ! आप लोग भी इस आवान निक्षेपण समितिका पालन करो ॥५८६-५६७॥
प्रतिष्ठापना समिति का स्वरूपएकान्ते निर्जने बूरे संवृत्ते वृष्टगोचरे । विलादि रहितेऽचित्तेविरोध जन्तुबमिते ॥५८८।। प्रदेशे कियते यत्स्वोच्चार प्रस्रवणादिकम् । दृष्टिपूर्व प्रतिष्ठापनिका सा समितिर्मता ॥५८६॥
अर्थ-मुनि लोग जो मल मूत्र करते हैं वह ऐसे स्थान में करते हैं जो एकांत हो, निर्जन हो, दूर हो, ठका हो अर्थात् आड़ में हो, दृष्टिके अगोचर हो, जिसमें बिल प्रादि न हो, जो प्रचित्त हो, विरोध रहित हो अर्थात् जहां किसी की रोक टोक न हो और जिसमें जीव जंतु न हों ऐसे स्थान में देख शोध कर वे मुनिराज मल मूत्रादिक करते हैं इसको प्रतिष्ठापना समिति कहते हैं ।।५८८-५८६।।
प्रासुक भूमि देखकर मल-मूत्रका क्षेपण प्रावश्यक-~मलमूत्रादिक सर्व श्लेष्मनिष्ठोवमादि छ । प्रासुकं मूतलं वीक्ष्य प्रतिलेल्य क्षिपेद्यमी ॥५६॥
अर्थ-मुनियों को प्रासुक भूमि देखकर और पोछी से शुद्ध कर फिर उस पर मल मूत्र कफ पुक नाक का मल आदि डालना चाहिये ।।५६०॥
दिन हो चाहे रात्रि मल-मूत्र का क्षेपण दृष्टि के प्रगोचर नहीं करना चाहियेक्षपायां दिक्से वान प्रवेशे दृष्टिगोसरे । कायोर्ष मलं सर्व क्षिपेन्जातु न संयमो ॥५१॥
अर्थ-चाहे दिन हो और चाहे रात हो जो प्रदेश दृष्टिके गोचर नहीं होता जो स्थान दिखाई नहीं देता उस स्थान पर मुनियों को अपने शरीर का कोई भी मल