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________________ मूलाचार प्रदीप ] { ६२ ) [द्वितीय अधिकार अर्थ-वती मुनियों को हिलने डुलने वाले तख्ते पर वा पाट पर न कभी सोना चाहिये और न बैठना चाहिये क्योंकि ऐसे आसन पर सोने बैठने से अनेक जीवों की बाधा हो जाती है ॥५८०॥ __ निंदनीय अप्रतिलेखन, युष्प्रतिलेखन एवं सहसा प्रतिलेखन का निषेध - - धर्माएकरणादोना नियमप्रतिलेखनम् । प्रादान स्थापना काले तथा दुष्प्रति लेखनम् ॥५८१।। महासंयम संसिध्ये सहसा प्रतिलेखनम् । प्रयत्न मनसा जातुन कार्य संयतः क्वचित् । ५८२।। __ अर्थ-मुनियों को धर्मोपकरणों के उठाने वा रखने में निंदनीय अप्रतिलेखन (पीछी से शुद्ध नहीं करना नहीं देखना आदि) कभी नहीं करना चाहिये तथा दुष्प्रलिलेखन (अच्छी तरह न देखना न अच्छी तरह पोछीसे शोधना यों ही इधर उधर पीछी मार देना) भी नहीं करना चाहिये तथा महा संयमको सिद्धि के लिये सहसा प्रतिलेखन (जल्दी जल्दी देख शोध लेना) भी नहीं करना चाहिये और बिना प्रयत्न तथा बिना मनके भी कभी प्रतिलेखन नहीं करना चाहिये ॥५८१-५८२॥ धर्मोपकरणों का बार-बार संशोधन-- किंतु फुस्प्रयलेन प्रहल स्थापनाविकम् । शनः स प्रतिलेख्य स्त्रीपधीनां मुहमुहुः ॥५३॥ अर्थ-किंतु धर्मोपकरणों का ग्रहण और स्थापन प्रयत्न पूर्वक बार बार देल कर और बार बार पीछी से शोधकर धीरे धीरे करना चाहिये ॥५८३॥ मादान निक्षेपण समिति पालन का फलइमा ये समिति सारा निष्प्रमावा भजति वै । तेषां माद्य व्रतं पूर्ण प्रताना मूलकारणम् ।।५८४।। अर्थ-जो मुनिराज प्रमाव रहित होकर इस मावान निक्षेपण नामको सारभ्रत समिति को पालन करते हैं उनके समस्त व्रतोंका मूल कारण ऐसा पहला हिंसा महाव्रत पूर्ण रीतिसे पालन होता है ।।५८४॥ ऐसा नहीं करने से स्थूल तथा सूक्ष्म जीवोंको हिंसाविनमा समिति योत्र शिथिला बिहरन्ति भोः । नन्ति स्यूलागि राशीस्ले का कथा सूक्ष्मदेहिनाम् ।। अर्थ-इस आधान निक्षेपण समिति को पालन किये बिना जो शिथिलाचारी मुनि विहार करते हैं वे अवश्य ही अनेक स्थूल जीवों के समूह का नाश करते हैं फिर भला सूक्ष्म जीवों को तो बात ही क्या है अर्थात् सूक्ष्म जीवों का तो बहुतों का नाश होता है ।।५०५॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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