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________________ मूलाचार प्रदीप] [द्वितीय अधिकार निक्षेपणं निरोक्ष्यो च्चश्वक्षम्या प्रतिलेख्यचे । मृदु पिच्छिमाधान निक्षेपा समितिश्च सा॥ __अर्थ-बुद्धिमान मुनि ज्ञानके उपकरणों को, संयमके उपकरणों को, शौचके उपकरणों को और सोने बैठने के साधनों को नेत्रों से अच्छी तरह देखकर तया कोमल पोछोसे शोध कर प्रयल पूर्वक ग्रहण करते हैं और प्रयत्न पूर्वक ही रखते हैं उनको इस क्रिया को आवान निक्षेपण समिति कहते हैं ॥५७४-५७५॥ पुस्तक आदि ज्ञानोपकरण को पीछी से देखकर रखनापुस्तकाच पधीन् साधुः कार्याथं चक्षुषा मुहः । विलोषध प्रतिलेख्याप्रगृह्मीयास्थापयेत्तथा ।। अर्थ-साधुओं को पुस्तक आदि ज्ञान के समस्त साधन अपने कार्यके लिये नेत्रोंसे अच्छी तरह देखकर तथा पीछी से शोध कर ग्रहण करना चाहिये और इसी प्रकार देख शोध कर रखना चाहिये ।।५७६।। ___ संस्तर प्रादि को हिलाने का निमेषसंस्तरं फलक पान्योपधि रात्रौ न छालयेत् । सति कार्यपि योगोन्द्रो जोववाधाषिशंकया ।।५७७।। अर्थ-मुनियों को आवश्यक कार्य होनेपर भी अनेक जीवोंकी बाधाके डरसे रात्रि में अपने सोने बैठने के पाट को वा अन्य संस्तरको कभी हिलाना व चलाना नहीं चाहिये ।।५७७।। नहीं हिलाने का कारणयली रात्री न दृश्यम्ले सूक्ष्माः स्थूलाश्चजंतवः । तस्मात्तश्चाननेनाशु ध्र वं तेषां विराधना ।। अर्थ-क्योंकि रात्रिमें सूक्ष्म वा स्थल कोई भी जीव दिखाई नहीं देते अतएव उस पाट व संस्तर के हिलाने चलाने में बहुत शीघ्र उन जीवों को विराषना हो जाती है ॥५७५॥ ___ दिन में भी अन्धकार युक्त स्थान में उपकरणों को रखने का निषेधविषसे था प्रदेशे बहधकारान्विते बुधैः । अदृष्टिगोचरे कार्य वस्तूनां स्थापनादिन 1॥५७६॥ अर्थ-~यदि दिन भी हो और जिस किसी अंधेरे स्थान में बहुत अन्धेरा हो कुछ दिखाई न देता हो उसमें भी किसी पदार्थको नहीं रखना चाहिये ॥५७६।। ___ हिलने डुलने वाले आसनों पर बैठने का निषेधपदके फलके न्यन्न वाचले शयनासनम् । जीवदाधाकरं जातु न कर्तव्यं प्रतामिभिः ॥५०॥
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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