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________________ मूलाचार प्रदीप ] नहीं डालना चाहिये ।।५६१ ॥ ( ९४ ) [ द्वितीय अधिकार कफ आदि मल पर बालू रेत का क्षेपण श्लेष्माविकं परिक्षिन् धरादी वालुकादिभिः । छावयन्तु बुधा यत्नादजन्तुपाला विशेषया ।।५६२३ अर्थ- बुद्धिमान संयमियों को काहिये कि वे पृथ्वीपर कफ वा नाक का मेल डाल कर उसके ऊपर बालू डाल दें जिससे कि उसमें किसी जीवके पड़ कर मर जाने की शंका न रहे |५६२ ।। देख शोध कर उठाने रखने से ही कमों का संवर हो सकता है - किमत्र बनोक्तेन सर्वमन्तर्मलोभनम् । प्रवष्टम्भं व कुडघावों वपुः कंड्यनादिकम् ।। ५६३ ॥ अन्यता त्यजनं किचिल्लोकन प्रतिलेखनः । विना जातु न कर्तव्यं संशय मुमुक्षुभिः ॥५६४ ॥ अर्थ- बहुत कहने से क्या लाभ है थोड़े से में इतना समझ लेना चाहिये कि मोक्षकी इच्छा करनेवाले संयमियों को जो कुछ करना हो दूर वा समीप में मल मूत्र कफ आदि का त्याग करना हो किसी दोवाल से शरीर खुजलाना हो अथवा और कोई पदार्थ रखना हो इत्यादि सब काम विना देखे और बिना शोधे बिना पीढ़ी से शुद्ध किये कभी नहीं करने चाहिये क्योंकि देख शोध कर उठाने रखने से ही कर्मों का संवर हो सकता है अन्यथा नहीं ।। ५६३-५६४।। ऐसा नहीं करने से स्थावर जीवों का घात तो होता ही है यतो येन्स मूढा क्षिपन्ति यत्नतो बिना । नसांस्ते भारयन्श्यत्र का वार्ता स्थावरांगिनाम् । अर्थ - इसका भी कारण यह है कि जो प्रज्ञानी संयमी बिना यत्नाचार के मल सूत्रका त्याग करते हैं वे अवश्य ही बस जीवोंका घात करते हैं फिर भला स्थावर कायके जीवोंकी तो बात ही क्या है अर्थात् उनका घात तो होता ही हैं ।। ५६५ ।। सर्वोत्कृष्ट प्रतिष्ठापन समिति का पालन भरत सर्व यत्नेनात्रेमा समितिमूजिताम् । पालयन्तु विदो योगशुध्या दुक्प्रतिलेखनं: ।। ५६ ।। अर्थ - यही समझकर बुद्धिमान संधमियों को मन वचत कायकी शुद्धता पूर्वक पूर्ण प्रयत्न के साथ नेत्रोंसे अच्छी तरह देखकर तथा पीछी से शोध कर इस सर्वोत्कृष्ट प्रतिष्ठापन समिति का पालन करते रहना चाहिये ।। ५६६ ।। इसका फल उपसंहारात्मक -- जिनवर मुख जातां धर्मरत्नावि खानि गणधर मुनि सेभ्यां स्वर्गसोपानमालाम् ।
SR No.090288
Book TitleMulachar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size14 MB
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