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________________ यही तो विभाव की सफलता है, और स्वभाव-भाव की विकलता इतने होने पर भी सागरीय जल सत्ता माँ- महासत्ता हिमखण्ड को डुबोती नहीं इसमें क्या राज है ? ऐसा लगता हैं, कि माँ की ममता है वह सन्तान के प्रति वंश अंश के प्रति ऐसा कदम नहीं उठा सकती -कभी भूल कर भी, किन्तु, भावी बहुमान हेतु • सब कुछ कष्ट-भार अपने ऊपर ही उठा लेती है और भीतर-ही-भीतर चुप्पी बिठा लेती है I "माना ! पृथक् वाद का आविर्माण होना मान का ही फलदान है साथ ही साथ वह बात भी नकारी नहीं जा सकती कि मान का अत्यन्त बौना होना मान का अवसान - सा लगता है 4-3 मूकमाटी : 55
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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