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________________ कम्भ का स्वागत करना है उसे वाल-भानु की भास्वर आभा निरन्तर उटती चंचल लहरों में उलझती हुई-सी लगती है कि . ... :: : गुनाही साड़ी पहले मदवती अबलाओं-सी स्नान करती-करती लज्जावश सकुचा रही है। पूरा वातावरण ही धर्मानुराग से भर उठा हैं और निकट-सन्निकट आ ही गया उत्कण्ठित नदी-तट। सर्व-प्रथम चाव से तट का स्वागत स्वीकारते हुए कुम्भ ने तट का चुम्बन लिया। तट में झाग का जाग है जिसकी धवलिम जाग में अरुण की आभा का मिश्रण है, सो"ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तर स्वयं अपने करों में गुलाब का हार ले कर स्वागत में खड़ा हुआ है। नदी से बाहर निकल आये सब प्रसन्नता की श्वास स्वीकारते। धरती की दुर्लभ धूल का परस किया सब की पगलियों ने मूक माटो :: 179
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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