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बिना दाग़ है यह शिल्प
और यह कुशल शिल्पी है। युग के आदि में इसका नामकरण हुआ है
'क' यानी धरती
और 'भ' यानी भाग्य होता हैयहाँ पर जो भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो कुम्भकार कहलाता है। यथार्थ में प्रति-पदार्थ वह स्वयं-कार हो कर भी यह उपचार हुआ हैशिल्पी का नाम कुम्भकार हुआ है।
हाँ ! अब शिल्पी ने कार्य की शुरूआत में ओंकार को नमन किया और उसने पहले से ही अहंकार का वमन किया है
कर्तृत्व-बुद्धि से मुड़ गया है वह और
28 :: मूक माटी