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पथ की इति पर स्पन्दन-सा कुछ घटता है हलचली मचती है वहाँ !
पथिक की अहिंसक पगतली से सम्प्रेषण - प्रवाहित होता है विद्युत्सम युगपत्
और वह स्वयं सफलता-श्री पथ की इति पर उठ खड़ी है सादर सविनयपथिक की प्रतीक्षाम............ ....... - जो निराशता का पान कर सोती हुई समय काट रही थी
युगों युगों से। विचारों के ऐक्य से आचारों के साम्य से सम्प्रेषण में निखार आता है, वरना विकार आता है !
बिना बिखराव उपयोग की धारा का दृढ-तटों से संयत, सरकन-शीला सरिता-सी लक्ष्य की ओर बढ़ना ही सम्प्रेषण का सही स्वरूप है
22 :: मूक पारी