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फिर वहीं पश्यन्ती उदार-उर की ओर उठती है हिलाती है आ हृदय-कमल को, खुली प्रति पाखुरी से मुस्कान-मिले बोल बोलती उन्हें सहलाती है माँ की भाँति ! हृदय-मध्य में मध्यमा कहलाती है अब।
और, जाने हम, कि पालक नहीं, वालक हीजो विकारों से अछूता है माँ का स्वभाव जान सकता है। फिर वही मध्यमा अब, अन्तर्जगत से बहिर्जगत् की ओर यात्रा प्रारम्भ करती हैं। पुरुष के आभप्रायानुरूप : प्रायः पुरुष का अभिप्राय दो प्रकार का मिलता हैपाप और पुण्य के भेद से।
सत्पुरुषों से मिलने वाला वचन-व्यापार का प्रयोजन परहित-सम्पादन है
और पापी-पातकों से मिलने वाला बचन-व्यापार का प्रयोजन परहित-पलायन, पीड़ा है। तालु-कण्ठ-रसना आदि के योग से जब बाहर आती है वही मध्यमा, जो सर्व-साधारण श्रुति का विषय हो वैखरी कहलाती हैं।
402 :: मूक मार्टी