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________________ यह लो, अधरों के सूक्ष्म स्पन्दन से अनुमान झलकने लगा कि ओंकार पद के उच्चारण का उद्यम उत्साहित हो रहा है। वैसे त्रिभुवन-जेता त्रिभुवन-पाल ओंकार का उपासन भीतर-ही-भीतर चल ही रहा है जो सुदीर्घ साधना का फल है । परा वाक् की परम्परा पुरा अश्रुता रही, अपरिचिता लौकिक शास्त्रानुसार वह 'योग - गम्या' मानी है, मूलोद्गमा हो, ऊर्ध्यानिना नाभि तक यात्रा होती है उसकी पवन - संचालिता जो रही ! फिर वही नाभि की परिक्रमा करती पश्यन्ती के रूप में उभरती है, नाभि के कूप में गाती रहती तरला तरंग - छवि वाली । पर, निरी निरक्षरा होती हैं, साक्षरों की पकड़ में नहीं आती विपश्यना की चर्चा में डूबे संयम से सुदूर हैं जो । मुक पाटी : 401
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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