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म्वण-कलश की कटता से कपित हा बिना, मादी के कुम्भ में भरे पावस ने पान-दान से पा यश उपशम-भाव में कहा, कि "तुममें पायस ना है तुम्हारा पाय सना है पाप-पंक से पूरा अपावन, पुण्य के परिचय से वंचित हो तुम, तभी तो पावन की पूजा रुचती नहीं तुम्हें पावन को पाखण्ट कहते हो तुम। जिसकी आँखों में काला पानी भी न हो.......: दख सकता वह इस दृश्य को। तुम्हारी पापिन आँखों ने पीलिया रोग को पी लिया है अन्यथा क्यों बनी है तुम्हारी काया पीली-पीली?
पर-प्रशंसा तुम्हें शूल-सी चुभती है कुम्भ के स्वागत-समादर से आग-बबूल हुए हो, जो भीतर होगा वही तो बाहर आएगा स्वयं मठा-महेरी पी कर औरों को क्षीर-भोजन कराते समय
दुकार आएगी तो "खट्टी ही ! तुम स्वर्ण हो उबलत हो झट से. माटी म्वर्ण नहीं है
kj4 :: मृग, माटो