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________________ अतिथि के चरण-स्पर्श पावन दर्शन हेतु अड़ोस-पड़ोस की जनता आँगन में आ खड़ी है । ज्यों ही अतिथि का आँगन में आना हुआ त्यों ही जय घोष से गूँज उठा नभमण्डल भी । और, भावुक जनता समेत सेठ ने प्रार्थना की पात्र से, कि तो अष्ट प्रहर तक ही उपयोग में लाया जा सकता हैं, अनन्तर वह सदोष हो जाता है। " पुरुषार्थ के साथ-साथ हम आशावादी भी हैं आशु आशीर्वाद मिले शीघ्र टले विषयों की आशा, बस ! बस चलें हम आपके पथ पर | जाते-जाते हे स्वामिन् ! एक ऐसा सूत्र दो हमें जिस सूत्र में बँधे हम अपने अस्तित्व को पहचान सकें, कहीं भी गिरी हो ससूत्र सुई "सो.. कभी खोती नहीं ।" 344 :: मूक माटी इस पर अतिथि सोचता है कि उपदेश के योग्य यह न ही स्थान है, न समय
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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