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________________ यूँ कहता हुआ ललाट-गत लट झट से पलट कर मूक होता है। और इधर 'सानन्द-सम्पन्न हुआ आहार दान पात्र का आसन पर बैठना हुआ प्रासुक-उष्ण जल से मुख-शुद्धि हुई अंजलि से उछले अन्न-पान कणों से प्रभावित उदर-उर-उरु आदि अंगों को अपने हाथों से शुद्ध बना कर कुछ पलों के लिए पलकों को अर्धोन्मीलित कर पात्र परम-तत्त्व में लीन हुआ। कायोत्सर्ग का विसर्जन हुआ, सेठ ने अपने विनीत करों से अतिथि के अभय-चिह चिहित उभय कर-कमलों में संयमोपकरण दिया मयूर-पंखों का मूदुल कोमल लघु मंजुल है। तृषा बुझाने हेतु नहीं, परन्तु शास्त्र-स्वाध्याय के पूर्व और शौचादि क्रियाओं के बाद हस्त-पादादि-शुद्धि हेतु, शौचोपकरण कमण्डलु में प्रासुक जल भर दिया गया, पूक माटी :: 349
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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