SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोजनालय में प्रवेश कीजिए' और बिना पीठ दिखाये आगे-आगे होता है पूरा परिवार । भीतर प्रवेश के बाद 1324 : मूकमाटी आसन-शुद्धि बताते हुए उच्चासन पर बैठने की प्रार्थना हुई पात्र का आसन पर बैठना हुआ। पादाभिषेक हेतु पात्र से किया जाता है विनम्र निवेदन, निवेदन को स्वीकृति मिलती है; पलाश की छवि को हरते अविरति भीरु अवतरित हुए रजत की थाली पर पात्र के युगल पाद-तल ! लो, उसी समय गुरु-पद के प्रति अनुराग व्यक्त करती थाली भी ! यानी, गुरु-पद का अनुकरण करती कुंकुम - कुन्दन-सी बनती लाल । छान, तपाये समशीतोष्ण प्रासुक जल से भरा माटी का कुम्भ हाथों में ले दाता, पात्र के पदों पर ज्यों ही झुका त्यों ही बस, कन्दर्प- दर्प से दूर गुरु- पद नख दर्पण में
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy