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________________ ० के कर्ण की सादर अतिथि को बुला रहे हैं। अभय का आयतन अतिथि आ रुकता है प्रांगण में निराकुल, अविचल ... फिर क्या कहना ! अहोभाग्य मानता हुआ धन्य धन्य कहता हुआ अतिथि को दायीं ओर अतिथि से दो-तीन हाथ दूर से प्रदक्षिणा प्रारम्भ करता है सेठ सपत्नीक, सपरिवार ! आज का यह दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि ग्रह-नक्षत्र - ताराओं समेत रवि और शशि मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा दे रहे हैं, तीन प्रदक्षिणा दी गईं, जीव दया- पालन के साथ । पुनः नमस्कार के साथ, नवधा भक्ति का सूत्रपात होता है : 'मन शुद्ध है वचन शुद्ध है तन शुद्ध है और अन्न-पान शुद्ध है आइए स्वामिन्! मूकमाटी 328
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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