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________________ . प्रायः स्वप्न प्रायः निष्फल ही होते हैं इन पर अधिक विश्वास हानिकारक है। 'स्व' यानी अपना नमानी प रा :.:.:: .. .. . .. : और 'न' यानी नहीं, जो निजी-भाव का रक्षण नहीं कर सकता वह औरों को क्या सहयोग देगा ? अतीत से जुड़ा मीत से मुड़ा बह उलझनों में उलझा मन ही स्वप्न माना जाता है। जागृति के सूत्र छूटते हैं स्वप्न-दशा में आत्म-साक्षात्कार सम्भव नहीं तब, सिद्ध-मन्त्र भी मृतक वनता है।" यँ, अवा की आवाज सुनता-सुनता अब वो शिल्पी अवा के और निकट आ गया पर, कहाँ सुनी जा रही है कुम्भ की चीख ?" कहाँ माँगी जा रही है कुम्भकार से भीख ? न ही कुम्भ की यातना न ही कुम्भ की याचना मात्र"वह वहाँ तब ! कहाँ हैं प्यास से पीड़ित-प्राण ? वह शोक कहाँ वह रुदन कहाँ भक मादी :: 21
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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