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________________ जिन आँखों में अतीत का ओझल जीवन ही नहीं, आगत जीवन भी स्वप्निल - सा धुंधला-धुंधला-सा तैरने लगा, .. और 47, 1 उदयन सर भावी, सम्भावित शकिल-सा कुल मिला कर सब कुछ धूमिल - धूमिल - सा बोझिल - सा झलकने लगा । सन्ध्या - वन्दन से निवृत्त हो कुम्भकार ने बाहर आ देखाप्रभात - कालीन सुनहली धूप दिखी धरती के गालों पर जो ठहर न पा रही हैं; ऊषा काल से पूर्व प्रत्यूष से ही उसका उर उतावला हो उठा है आज अबा का अवलोकन करना है उसे ! कुम्भ ने अग्नि परीक्षा दी और अग्नि की अग्नि परीक्षा ली, शत-प्रतिशत फल की आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है, फिर भी मन को धीरज कहाँ 29 मूकमाटी और कब ? विपरीत स्वप्न जो दिखा..! अपनी ओर बढ़ते शिल्पी के चरण देख कुम्भ की ओर से स्वयं अवा ने कहा : हे शिल्पी महोदय !
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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