SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुम्भ की स्पर्शा ने परस है. यह कुम्भ ने कहा- विशुद्ध परस हैं इसका अनुभव बिना जले तपे सम्भव नहीं है । कुम्भ को पूछा कि इसी सन्दर्भ में कुम्भ की रसना ने भी इस बात की घोषणा कर दी, कि 'अग्नि में रस - गुण का अभाव है' यह जिन धीमानों की धारणा है। अनुभव और अनुमान से बाधित है जब धूम का रसास्वादन हो सकता है I तब अग्नि का स्वाद रसना को क्यों न आएगा ? हाँ! हाँ !! रसनेन्द्रिय के वशीभूत हुआ व्यक्ति कभी भी किसी भी वस्तु के सही स्वाद से परिचित नहीं हो सकता, भात में दूध मिलाने पर - निरा-निश दूध भात का नहीं, मिश्रित स्वाद ही आता है, फिर मिश्री मिलाने पर "तो तीनों का ही सही स्वाद लुट जाता है ! रस का स्वाद उसी रसना को आता है जो जीने की इच्छा से ही नहीं, मृत्यु की भीति से भी ऊपर उठी है I धूम्र घुटन से मूर्च्छिता हुई कुम्भ की पतली नासा वह, घुटन के अभाव में अब रसना की घोषणा का समर्थन करती-सी मूक पाटी :: 281
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy