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________________ इस बात का ज्ञान कान हुन कम्भ न तुम का 'माण प्रारम्भ किया। धूम्र-भक्षण के काल में कुम्भ की रखना ने असाच का अनुभव नहीं किया सो. धूप का वमन नहीं हुआ। वमन का कारण और कुछ नहीं, आन्तरिक अचि मात्र। इससे यही ज्ञात होता है कि विषया आर कषाया का जमत नहा हाना..ह ............... ... ........ .. उनके प्रति मन में अधिरुचि का होना हैं। शनैः शनैः अब ! धूम का उटना बन्द हुआ निधुम-अग्नि का आलोक अवा के लोक में अवलोकित होने लगा। तप्त-स्वर्ण की अरणिम-आभा भी अवा की आन्तरिक आभा-छवि से प्रभावित हुईआज के दिन इस समय शत-प्रतिशत अग्नि की उष्णता उद्घाटित हुई है। अनल के परल पा कर कम्भ की काया-कान्ति जल उठी और वह कलान्ति में इयती जा रही हैं जब कि उसकी आत्मा उज्ज्वल होती हुई सहज-शान्ति में इवन को लगभग 280 :: मूक माटो
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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