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________________ ऐसी हँसती धवलिम हँसियाँ मनहर हीरक मौलिक-मणियाँ मुक्ता मूंगा माणिक-छवियाँ पुखराजों की पीलिम पटियाँ राजाओं में गग उभरता नीलम के नग रजतिम छड़ियाँ। र: गर ।श का मानना .. .. . :. राहु राजी हुआ, राशि स्वीकृत हुई सो"दुर्बलता मिटी सागर का पक्ष सबल हुआ। राहु का घर भर गया अनुद्यम-प्राप्त अमाप निधि से तब राहु का सर भर गया विष-विषम पाप-निधि से। यानी अस्पर्श्व-निधि के स्पर्शन से राह इतना काला हो गया, कि वह दुर्दर्श्य हो गया पाप-शाला क्षीणतम सुकृतवाला दृश्य नहीं रहा दर्शकों के स्पर्श नहीं रहा स्पर्शकों के : लो, विचारों में समानता घुली, दो शक्तियाँ परस्पर मिलीं। गुरवेत तो कड़वी होती ही है और नीम पर चड़ी वह फिर कहना ही क्या ! 286 :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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