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________________ क्या आपसे परिचित नहीं ? क्या मृगराज के सम्मुख जा मनमानी करता है मृग भी ? क्या मानी बन मेंढक भी विषधर के मुख पर जा खेल खेल सकता है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि धरती की सेवा के मिष आपका उपहास कर रहा हो ! कुछ भी हो, कुछ भी लो, मन-चाहा, मैंह-माँगा ! माँग पूरी होगी सम्मान के साथ, यह अपार राशि राह देख रही है। शिष्टों का उत्पादन - पालन हो दुष्टों का उत्पातन - गालन हो, . ... ... . . . . . . . . . ... . सम्पदा की सफलता वह सदुपयोगिता में है ना!" राह में राशि मिलती देख राहु गुमराह-सा हो गया हाय ! खेद की बात है राहु की राह ही बदल गई और चुपचाप यह सब पाप होता रहा दिनदहाड़ेसरासर सागर से निर्यात सौर-मण्डल की ओर"! यान में भर-भर कर डिझल-मिल, झिल-मिल अनगिन निधियाँ एक पाटी 235
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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